Tuesday, December 24, 2013

इसमें नया क्या है ?

इसमें नया क्या है ??????

१. जिस कांग्रेस ने बिहार को गर्त में पहुँचाया था,लालू ने उसी कांग्रेस का हाथ बिहार में थाम लिया था .बिहार की जनता आज तक लालू जी के साथ कांग्रेस की गलबहियां देखती आ रही है. इसमें नया क्या है??

२.जिस दलितों को आज तक कभी विकास नाम की झलक तक नहीं दिखाई गयी, उनही दलितों के महानेता राम बिलास पासवान कांग्रेस के गोद में जाकर बैठ गए...उन्होंने ये भी नहीं सोचा की कांग्रेस की सोच विनाश के अलावा केवल और केवल लूट तक सिमित है तो इसमें नया क्या है ??

३.जिन वामपंथियों ने देश में सामाजिक विषमताओ को जनम देने में कोर कसर नहीं छोडी थी.जिन वामपंथियों ने समाज के गरीब गुरबों को हक़ दिलाने के लिए कांग्रेस के खिलाफ लडाई लड़ने का नाटक किया, वो वामपंथ भी कांग्रेस के खिलौने बन गए थे तो इसमें नया क्या है????

४.मुलायम और मायावती की मौकापरस्ती तो जगजाहिर है ही.वो अपने निजी स्वार्थवश तो कहीं भी बिन पेंदी की लोटे की तरह लुढ़क जाते हैं.अगर आज वो कई सालों से कांग्रेस के हाथों जनता को बेच रहे हैं तो इसमें नया क्या है ???

५.जिस नितीश कुमार ने कांग्रेस के खिलाफ भाजपा गठबंधन के साथ विकास की राह चुनी, उसी ने कांग्रेस के बहकावे में और चलावे में आकर इतनी साल पुराणी दोस्ती तोड़ डाला सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए.आज उनकी सरकार कांग्रेस के सहयोग से चल रही है तो इसमें नया क्या है?

६.तेदेपा के चन्द्र बाबू नायडू को आन्ध्र प्रदेश में सत्ता में आने से रोकने के लिए मत विभाजन के लिए चिरंजीवी की पार्टी प्रजा राज्यं को खड़ा किया और फिर उसको सरकार में शामिल कर फिर कांग्रेस में मिलते हुए मलाईदार मंत्री बनाया तो इसमें नया क्या है ?

७.शिवसेना के राज ठाकरे को बहका कर अलग पार्टी बनवा कर महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सरकार बना ली तो इसमें नया क्या है ?

८.आज अगर देश के दुश्मन वेटिकन और फोर्ड के एजेंट आम आदमी पार्टी को कांग्रेस सहयोग दे रही है और सरकार दिल्ली में बन रही है तो ये भी तो जगजाहिर था. ये पुराना खेल तो हम शुरू से ही बताते आये हैं आप लोगों को . इसमें नया क्या है ??????

क्यूकी ये कांग्रेस है, जो देश का आज तक नहीं हो पाई है,.....लेकिन इसमें भी नया क्या है.

जोश-जोश में हमारे कुछ स्वयंसेवक और राष्ट्रवादियो मित्रों ने भी अरविन्द का साथ इसलिए थामा की उनको ये भरोसा हो गया था की "अरविन्द मर जायेगा , परन्तु कांग्रेस के साथ नहीं जायेगा". हम उनको कहते थे की ये होके रहेगा तो वो हमसे लड़ने को तैयार हो जाते थे, कई शर्त लगाने को भी तैयार हो जाते थे.मैं मुस्कुरा कर कहता आने वाले वक़्त का इंतज़ार कीजिये. अरविन्द में भी वही गुणसूत्र दिखेगा जो ऊपर लिखे तमाम इमानदार कहलाने वाले नेतावों में दिखा है लोगों को,फिर भी वो बाज़ी लगते हुए कहते न जी, बहुत बिश्वास है हम लोगो को अरविन्द पे.अब आज सुबह से मुझे कई एइसे दोस्तों के फोन आने लगे हैं और वो पानी पि पीकर अरविन्द को कोस रहे हैं की अरविन्द भी कांग्रेस का ही सहयोगी निकला.अब आप भी तो कहिये बन्धुवों, इसमें नया क्या है. ????

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