Friday, May 31, 2013

अब निशाने पर मंदमोहन सिंह

मित्रो कांग्रेस ने अब लोगोँ को बेवकूफ बनाने के लिए 1 और पैँतरा चला है। दरअसल पिछले 3-4 साल मेँ जितने भी घपले-घोटाले , अव्यवस्था और अराजकता का तांडव चला है उसका ठीकरा राष्ट्रीय रोबोट मनमोहन सिँह उर्फ सन्नाटा सिँह के सिर फोङने की पूरी जमीन तैयार हो चुकी है।
रेल घूस कांड मेँ पवन बंसल के इस्तीफे के मामले मेँ भी बिकाऊ और दलाल मीडिया के माध्यम से यही प्रचारित करने की कोशिश की गई की मंदमोहन और सोनिया गाँधी के बीच तनाव है और अब सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद(NAC) की सबसे प्रमुख सदस्या और वामपंथी अरुणा रॉय ने अपना कार्यकाल खत्म होने के ठीक 2 दिन पहले ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि मनमोहन सिँह कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की कोई बात नहीँ मानता और इसी कारण से मजदूरोँ को न्यूनतम मजदूरी देने की बात भी लागू नहीँ हो पाई और अब तक हुए सब गडबङ घोटालोँ के लिए केवल मनमोहन सिँह ही जिम्मेदार है।
वैसे अरुणा रॉय जी को ये बात अपना कार्यकाल खत्म होने के 2 दिन पहले ही कैसे समझ आई। जब वह पिछले कई सालोँ से NAC मेँ सोनिया गाँधी की चापलूसी करके माल गटक रही थी तब उसे क्योँ ये सब समझ नहीँ आया।
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सुन लो ऐ हुक्मरानो और उनके चमचोँ ये जनता अब और ज्यादा समय तक गुमराह नहीँ होने वाली, अब ये जान चुके हैँ कि मनमोहन तो केवल उस बंदर की तरह है जो चाबी भर देने के बाद तालियाँ बजाता रहता है। असली फसाद और अव्यवस्था की जङ तो ताङका/विषकन्या और उसका मंदबुद्धि लौँडा है।

Thursday, May 30, 2013

नक्सली हमला - सच्चाई

सोचिये मित्रो , जब परिवर्तन यात्रा के निमंत्रणपत्र से साफ हो गया की महेंद्र करमा उस यात्रा में शामिल नही होने वाले थे ... फिर नक्सलियों ने यात्रा को रोककर सबसे पहला सवाल क्यों पूछा की "कौन है महेंद्र करमा" जबकि अंतिम मिनट में महेंद्र करमा उस यात्रा में शामिल हुए थे ...

यानी कोई था जिसने नक्सलियो को खबर कर दिया था की महेंद्र करमा आ रहे है ..

कल सहारा समय पर दिखाए गये फुटेज में छत्तीसगढ़ के एकमात्र कांग्रेसी सांसद और केन्द्रीय कृषिराज्य मंत्री भक्त चरण दास ने स्थानीय बिधायक और अजीत जोगी गुट के कट्टर समर्थक लकमा को थप्पड़ दिखा दिखाकर बोल रहे थे " बोल बोल .. नही तो एक थप्पड़ दूंगा ..तूने महेंद्र करमा को क्यों ले गया थे बे ? बोल ..बोल चुप क्यों है ..एक थप्पड़ दू तेरे को तब बोलेगा ?? क्यों ले गया था महेंद्र करमा को जब तेरे को मालूम था की नक्सली उनके दुश्मन है....

Saturday, May 25, 2013

मौत फिक्सिंग - कांग्रेस्सी अजीत जोगी ने क्यों अपना प्रोग्राम बदला ..ये भी एक सवाल है ?


कांग्रेस्सी अजीत जोगी ने क्यों अपना प्रोग्राम बदला ..ये भी एक सवाल है ?

घटना लोम्हार्सक है दुखदायी है ...पर ये घटना भी -राजनीति लेती जा रही है ...सोनिया गाँधी ने .प्रेस के सामने आकर दुःख जताया है .. इस से पहले मनमोहन सिंग ने मीटिंग बुलाई --राहुल गाँधी ने भी मुख्यमंत्री से बात की ..इन तीनो की ये सक्रियता क्या अकारण है .... इस से पहले जब नाक्स्सली- पुलिश के लोगो को मारते थे या गैर कांग्रेस्सी लोगो को मारते थे ..जब तो इनके मुख से एक भी शब्द नहीं फूटता था ..और आज तीनो ...एक साथ बैठकर ,,स्तथी पर नज़र रखे हुए हैं .. राजनीती भी शरू हो गई है ....

अजित जोगी ..शरू हो गए ..... सरकार को ससपेंड करो ? रमण सिंग को गिरफ्तार करो ? प्रदेश में रास्त्रपति शाशन लगाओ ...कांग्रेस के लोग मरे हैं ..इसका जवाब देना ही होगा ? देश में इस से पहले इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है ..आदि आदि ---ये इतनी अधीरता ..आज से पहले किसी भी आतंकवादी घटना में -मनमोहन -सोनिया और राहुल ने कभी नहीं दिखाई है .... ये बात भी शक पैदा करती है ....

कही ये कांग्रेस के नेताओं के द्वरा ही की गई कोई "मौत फिक्सिंग" तो नहीं है ... चुनाव नजदीक हैं ..कांग्रस सत्ता पाने के लिए कुछ भी कर सकती है ... कांग्रेस्सी मर भी गए तो क्या फरक पड़ेगा .. अगर इस कारण सत्ता मिल जाए तो ....लाभ का ही सौदा है AND अजीत जोगी ने क्यों अपना प्रोग्राम बदला ..ये भी एक सवाल है


कल नकसलियोँ ने काँग्रेश के काफिले परहमला क्या कर
दिया तो पिछले 6 घँटोँ से
हमारी निकम्मी मिडिया छाती पीटकर रो रही है" और
साथ मे काँग्रेश के कुत्ते भी भोँक रहै है"
" लेकिन जब नकसलियोँ द्वारा हर दिन हमारे CRPF के
जबानो पर हमला होता है तब ये मिडिया बाले और
काँग्रशी सुअर कहाँ मर जाते है?


कांग्रेस नेताओ ने नक्सल प्रभावित एरिया में जाने के लिए
केंद्र सरकार ने बने नियम का घोर उलंघन किया था ...
१- किसी भी नक्सली एरिया में ज्यादा नेता एक साथ
नही जाने चाहिए ..
२- काफिले में शामिल गाडियों में बीच
दुरी होनी चाहिए ..
३- जिस रास्ते से काफिला जाये उसी रास्ते से वापस
नही आना चाहिए ..
४- सबसे महत्वपूर्ण बात ये की लोकल इंटेलिजेंस और राज्य
सरकार के सलाह को मानी जानी चाहिए
अफ़सोस की बात ये की इनमे से किसी भी नियम का पालन
कांग्रेस ने नही किया ... और अब अजीत जोगी जैसे लोग
घडियाली आंसू बहा रहे




महानौटंकीबाज अजित जोगी घडियाली आंसू बहा रहा है ... ये जब जिलाधिकारी हुआ करता था तब मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ एक में थे और इसने भोले भाले आदिवासीयो को सरकारी खर्चे से खूब ईसाई बनवाया ... फिर सोनिया गाँधी इससे खूब खुश हुई ... और जब कोर्ट ने इसे खूब फटकार लगाया तो सोनिया गाँधी इसे कांग्रेस में ले आई ..क्योकि सोनिया गाँधी को सिर्फ घोर हिन्दू विरोधी नेता ही अच्छे लगते है .


छ्त्तीशगढ़ मे १००० लोगों ने वो कर दिया जो भारत के ६० करोड़ वोटर भी मिलकर न कर पाए ----कांग्रस का समूल विनाश ----
अभी अभी समाचार आया है कांग्रेस उपाध्यक्ष स्पेशल फ्लाईट से छतीशगढ रवाना हो गए ----कुर्तें की बहां मोरोड़ कर नक्सलियों से लोहा लेना ---
पूरे हमले मे एक बात नहीं समझ मे आ रही की अजीत जोगी उस काफिले मे क्यूँ नहीं था --जिस काफिले मे हमला हुआ ??????????????? -????????

नक्सलियों के क्रियाकलाप पर गौर किया जाए तो नक्सली हमेशा वर्तमान सरकार के विरुद्ध हमला करतें हैं --शायद ऐसा पहला चांस है की नक्सलियों ने एक विपक्ष पर हमला किया है ----
... रमण सिंह सरकार को बर्खास्त किया जाये ----अजीत जोगी
अगर ऐसा है तो पहले मनमोहन सिंह सरकार को बर्खास्त किया जाए ----इस सरकार के रहते देश पर बार बार हमला हुआ है ----
फिक्सिंग प्रकरण मे बिंदु सिंह सरकारी गवाह बनाए जा सकतें हैं -----मानना पड़ेगा जिसने भी इस सट्टेबाजी की मुखबरी की है कितनी सटीक की है ---
ये धोनी ने अभी कोई बैक खरीदी है ---कितने लाख की है ?
जय जन जय भारत




छतीसगढ़ में नक्सली हमले में 28 कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या - ब्रेकिंग न्यूज़
मैं इस घटना की कड़ी निंदा करता हूँ (कसम से दोस्तों आज निंदा करने में बड़ा मज़ा आ रहा है)
काश ये मौका रोज़ मिले........


अजित जोगी का एक तीर से दो शिकार?? छतीसगढ़ नक्सली हमले के पीछे कौन???
शिवराज सिंह की गांधीगिरी कहा :: 'राजनितिक व्यवस्था पर हमला'.. अति निंदनीय कार्य?? upa में लाखों करोड़ की लूट हो गयी .. क्या यह 'राजनितिक व्यवस्था पर हमला' नही है?? किसने करवाया?? शिवराज सिंह जी जबाब दें .. इसके पीछे कौन है??
पहले धार के सरस्वती मंदिर में नमाज पढ़वाया और नाबालिग मुस्लिम के साथ भगवा छोड़ हरी पगड़ी बांध कर सेक्युलर भी बने ..
अब शिवराज सिंह की तीसरी पारी पक्की है सेक्युलर गाँधीवादी फोर्मुले से ??
उनके सलाहकार सी पी जोशी संजय जोशी के निकटतस्थ काबिल लोगों से भरी हुई है??

नक्सलवाद की जननी है कांग्रेस

नक्सलवाद की जननी है कांग्रेस 

आज छत्तीशगढ़ में अपने नेताओं पर हुए हमले के बाद कांग्रेस नक्सलवाद के नाम पर भले ही वहां की सर्कार को भंग करने की कोशिश करे असलियत यह है की इसके लिए एकमात्र वही जिम्मेवार है.देश में नक्सलवाद की जड़ें कांग्रेस ने ही मजबूत की और आज भी उसकी लचर नीति के चलते ही यह समस्या बढती जा रही है.नक्सली आन्दोलन बहले ही बंगाल से शुरू हुआ हो लेकिन बिहार में इसे फलने फूलने का मौका मिला.कांग्रेस की कुनीतियों ने ही इसे आगे बढाया,,1947 से 1975 तक बिहार में कांग्रेस की सत्ता रही, इसी बीच दलितों को सरकारी जमीन के पट्रेट तो दिए गए पर उस जमीन पर कोई दलित कब्जा नहीं कर सका इस की वजह यह रही कि मुख्यमंत्री व मंत्रिमंडल के दूसरे सदस्य उंची जाति के रहे। कुलमिलाकर कर्पूरी ठाकुर सरकार व उनका प्रशासन दलित विरोधी रहा।

अगर बिहार में गरीब व दलितों के साथ इनसानी बरताव किया जाता तो नक्सलवाद बिहार में नहीं पनपता ना ही बेवजह पुलिस वाले और सवर्ण मारे जाते। बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, ओड़िसा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पं बंगाल, उत्तर प्रदेश में भी इस आंदोलन की आग न लगती। इन राज्यों में भी नक्सलियों का जोर उन इलाकों में ज्यादा रहा जहां आदिवासी व दलित बहुल है, जो बहुत ज्यादा गरीब हैं और सरकारों के द्वारा सताए गए है।

भारत की आजादी के 20 वर्ष बाद मई 1967 में पं बंगाल के गांव नक्सबाड़ी में गरीब आदिवासी, दलित व मजदूरों ने कम्युनिस्ट नेता स्व चारू मजूमदार व कानू सान्याल की अगुवाई में बड़े भूस्वामियों व सरकार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजा दिया। इस समय आंदोलन की मुख्य वजह एक आदिवासी ने अपनी जमीन पर बोआई करने के लिए अदालत से आदेश ले लिया था। लेकिन बाहुबली भू-स्वामियों ने उसे अपनी जमीन पर बुआई नहीं करनी दी। शुरूआत में इस आंदोलन का मकसद गरीब लोगों को अपना हक दिलवाना था। नक्सलबाड़ी के बाद यह आंदोलन पं बंगाल के दूसरे गांवों व क्षेत्रों में भी पहुंच गया। गरीब आदिवासी दलित इस आंदोलन से बड़ी मात्रा में जुडते चले गए। पं बंगाल के दार्जलिंग जिले में बिहारी मजदूरों की संख्या बहुत ज्यादा थी। बिहार के दलित भी उंची जाति के सताए हुए थे।

धीेरे-धीरे बिहार में भी इस आंदोलन में अपनी जड़े जमा ली बिहार का उत्तरी क्षेत्र आदिवासी क्षेत्र है। जल-जंगल और जमीन ही इनके पेट भरने के मुख्य साधन है। यहां कोयला, लोहा, अभ्रक के बड़े-बड़े भंडार है इसलिए यहां की जमीनों को नेताओं और बाहुबली उंची जाति के लोगों ने हड़प् ली और मालामाल हो गए आदिवासी गरीब से नंग हो गया।

1973 के आसपास राजेन्द्र यादव व कल्याण मुखर्जी ने बिहार में नक्सलवादी आंदोलन के नाम से एक सर्वे किया जिस में गरीबों दलितों की दुर्दशा की हकीकत सामने आई। दबंग जाति के उत्पीड़न से पिछड़े वर्ग के लोग भी सताए जा रहे थे अगर इनके बच्चे उंची जाति के बच्चों के साथ पढ़ते तो उंची जाति के लड़के उनका उत्पीड़न करते और नंगा करके घुमाते थे गांव में, इसलिए पिछड़े वग्र के लोगों ने ‘‘त्रिवेणी संघ’’ बना लिया था इस संघ में दलितों के प्रति हमदर्दी दिखाई। नक्सलियों का बल पा कर दलित काम की मजदूरी मांगने लगे और जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाने लगे।

गरीबों द्वारा मजदूरी मांगने और आवाज उठाने पर उंची जाति के लोगों ने इन्हें वर्ग शत्रु यानि नक्सलवादी कहने लगे पुलिस व प्रशासन हमेशा उंची जाति वालों की मददगार रहे किसी गांव में कोई घटना होने पर पुलिस गरीबों को नक्सली कह कर गोलि मार देते है। और इन्हें मुठभेड़ का नाम देकर पल्ला छुड़ा देते हैं। गरीबों को सबक सिखाने के लिए राजपूतों ने ‘‘रणवीर सेना’’ और ब्रह्मणों ने ऋषि सेना बना ली, इन सेनाओं के नौजवानों को हथियारों से लैस करने केलए प्रशासन ने खुलकर हथियारों के लाईंसेंस दिए और प्रशिक्षण के लिए शहरों व गांवों में प्रशिक्षण केंद्र खोले गए।

1976 में बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने भोजपूर के फायरिंग संेटर का उदघाटन किया था इन्होंने बड़ी संख्या में निर्दोष दलितों का कत्ल किया। कांग्रेस सरकार ने इस का पुरा समर्थन किया था दलितों की झोपड़ियां जलाई गई दलित लड़कियों व महिलाओं का सामुहिक बलात्कार किया और नौजवान दलित लड़कों को झुठे मुकदमों में जेल भिजवा दिया गया।

बिहार के लोगों को आज भी याद होगा कि 90 के दशक में इन सेनाओं ने ‘‘लक्ष्मण गुहा गांव के 139 दलितों को एक ही रात में मौत के घाट उतार दिया था। राजनीतिक दलों ने इस घटना का भरसक विरोध किया था। आरा जिले के सौनाटोला’’ गांव में दलितों मजदूरी द्वारा मजदूरी बढ़ाने के लिए आंदोलन किया स्वर्ण जाति के लोगों ने इसे नक्सली आंदोलन बता कर कई दलितों को जेल भिजवादीया। तत्कालिन डीएम कृष्णा सिंह ने गांव के राजदूतों को कहां ‘‘आप लोगों के लिए गर्व की बात है कि राजपूत हो कर भी आप मुट्ठीभर दलितों को शांत नहीं कर सकते।

बिहार से यह आंदोलन छत्तीसगढ़ के बस्तर में पहुंचा बस्तर के आदिवासी बहुल गरीब होने के कारण कारोबारियों के शोषण के भी शिकार है आजादी से पहले तेंदुपत्ता, लाख, शोप, चिरोजी, महुआ आदि वस्तु पर आदिवासियों का हक था लेकिन अब जंगल की उपज पर दलालों व पूंजीपतियों का कब्जा है इन्हें मजदूरी नाम मात्र की दि जाती है। आदिवासियों की जिंदगी जंगल और उस से मिलने वाली संपदा पर ही निर्भर है। सब कुछ छिन जाने के बाद आदिवासी हिंसक हो गए और नक्सलवाद का रास्ता अपनाया।

जो हाल बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ का है वही हाल आंध्र प्रदेश, ओडिसा कर्नाटक, महाराष्ट्र, पं बंगाल और यूपी का है पूरी आदिवासी इलाकों को सरकार व पंूजीपति लोग लुट रहे है आदिवासियों की तरक्की के नाम पर राज्य व केन्द्र सरकारें हर साल अरबो-खरबों का घोटाला कर रही है। देश की सभी पार्टियां दलितों की उन्नती की बात तो करती है पर काम नहीं करती। सरकार भी हिंसा के बदले हिंसा का सहारा ले रही है न राज्य सरकारों व केन्द्र की सरकारों ने नक्सलवाद की जड़ तक जाने की रती भर कोशिश नहीं की वे केवल पाच सितारा होटलों से घोषणाए करती है और कुछ नहीं केन्द्र सरकार यानी मनमोहन सरकार डेड लाख अर्धसैनिक बलों को तैनात कर के सोचती है कि हम इस पर पार पा लेंगे? जितना पैसा इल बलों की तैनाती पर खर्च किया जा रहा है उतना पैसा इन आदिवासीयों के विकाश के लिए लगाया जाता तो समस्या का हल निकल जाता माओवादी व नक्सलवादी न तो विदेशी है न बंगलादेशी जो पांच करोड़ हमारे देश में भरे हुए है और न ही आतंकवादी वे इसी देश के वासी है जो केवल और केवल अपने हक के लिए लड़ रहे है। इनको मारने का मतलब है अपने ही लोगों को मारना जिसे उचित नहीं कहा जा सकता भले ही इन का रास्ता गलत हो। दरअसल दलित आदिवासियों के दिलों में जलालत, जल्म, सामाजिक व मानसिक असमानता की आग धधक रही है यह ज्वालामुखी बन कर नक्सलवाद के रूप में फुट रहा हैं

आदिवासी दलितों को समान अधिकार दिया जाए, बेरोजगार युवकों को रोजगार दिया जाए। शिक्षा, स्वास्थ्य व बुनियादी जरूरते पूरी हो तो उनके दिलों में फुट रहे ज्वालामुखी शांत हो जाएगी और वे नक्सलवाद का रास्ता छोड़ देंगे।

Monday, May 20, 2013

मनमोहन सिंह ने अपनी जन्मतिथि

अगर कोई होनहार बेरोजगार युवक गलती से भी अपनी जन्मतिथि किसी सरकारी फॉर्म में गलत लिख थे तो वो विभाग तुरंत ही उसके खिलाफ केस दर्ज करवा देगा और उसे जेल जाना होगा और वो पूरी जिन्दगी एक जेलयाफ्ता बनकर जीने को मजबूर रहेगा |

लेकिन भारत के होनहार प्रधानमंत्री अपनी राज्यसभा की उम्मीदवारी फॉर्म पर अपना जन्मतिथि दो साल कम लिखते है .. और वो भी अपने खुद के हाथो से .. फिर दो दिन के बाद जब एक पत्रकार पीएमओ की साईट पर जाकर मनमोहन सिंह का जन्मतिथि देखता है तो चौक जाता है क्योकि मनमोहन सिंह ने अपनी जन्मतिथि राज्यसभा उम्मदीवारी पत्रक में गलत लिखी थी ...

फिर मीडिया में खबर आने पर सिर्फ माफीनामा और एफिडेविट के साथ दूसरा पत्रक भर दिया ..और कोई केस नही कोई मुकदमा नही ...

कौन कहता है की भारत का कानून व्यस्था अमीरों गरीबो और ताकतवर और आम लोगो में कोई फर्क नही करता ??

Saturday, May 18, 2013

हिन्दुओ पर अत्याचार क्यों होता है

कभी आपने सोचा है की सरकार मे ज़्यादातर मंत्री हिन्दू है फिर भी हिन्दुओ पर अत्याचार क्यों होता है ,नहीं पता चलिये मैं आपको बताता हूँ क्यों ?

क्योंकि कांग्रेस के मंत्री ईसाई या मुसलमान है बस धोखे देने को नाम ही हिन्दू की तरह है हिन्दू वोटरो को लुभाने के लिए....

• सबसे पहले सोनिया गांधी असली नाम एंटोनिया माइनो कट्टर कैथोलिक ईसाई
• राहुल गांधी असली नाम राउल विंची
• प्रियंका गांधी का पति राबर्ट वाड्रा कट्टर ईसाई
• प्रियंका के दो बच्चे रेहना और मिराया
• दिग्विजय सिंह ईसाई धर्म अपना चुका है इसकीवेबसाइट पर जाकर देख सकते है
• छतीसगढ़ के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री अजित जोगी और उनका पूरा परिवार ईसाई धर्म
अपना चुका है
• कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम ईसाई बन चुके है और उनकी पत्नी नलिनी 167 ईसाई
मिशनरी एनजीओ की मालकिन है
• पूर्व चुनाव आयुक्त नवीन चावला, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालाकृषडन भी ईसाई धर्म अपना चुके है
• 2जी घोटाले का आरोपी ए राजा ईसाई है
• द्रमुक प्रमुख एम के करुणानिधि व उनका पूराखानदान ईसाई बन चुका है
• वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रणव मुखर्जी, सुबोध कान्त सहाय, कपिल सिब्बल, सत्यव्रत चतुर्वेदी, अंबिका सोनी,पीवी थामस, ए के एन्टोनी, जनार्दन दिवेदी, मनीष तिवारी ये सभी ईसाई
धर्म अपना चुके है
• धर्म को अफीम मनाने वाले कम्युनिस्ट सीताराम येचूरी, प्रकाश करात, विनायक
सेन ईसाई है
• अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेस, सारे कांग्रेसी पत्रकार ईसाई हो चुके है
• आंध्र प्रदेश के 150 से ज्यादा मंत्री ईसाई बन चुके है इसलिए आंध्र प्रदेश मे सारे
मंदिरो को तोड़ा जा चुका है ,
• बाकी बचे नेता मुस्लिम है जैसे सलमान खुर्सीद, अहमद पटेल इत्यादि ।
• आंध्र प्रदेश के वाईएसआर रेड्डी ईसाई है औरउसका बेटा अनिल जो की ईसाई
मिशनरी समाज का सबसे बड़ा माफिया है,इसी अनिल पर यह भी आरोप है की धर्म परिवर्तन के लिए जो कमीशन बाहर से आता है उसके लेनदेन संबंधी बँटवारे को लेकर अनिल ने वाईएसआर केआई हत्या का षड्यंत्र रचा था । इसी अनिल ने पूरे भारत के जनमानस
को ईसाई बनाने का ठेका लिया है । इसल्के पास 21 निजी हेलीकाप्टर है व खरबो रुपये की संपति है इसनेकेवल हैदराबाद मे ही 100 से ज्यादा conversion workshops
लगा रखी है धर्म परिवर्तन के लिए । इसका ढांचा किसी बहुत बड़ी एमएनसी कंपनी द्वारा बनाया गय जिसमे सीईओ से लेकर मार्केटिंग professionals तक भर्ती किए जाते है । प्रत्येक ईसाई मिशनरी को टार्गेट दिया जाता है की प्रति सप्ताह 10 हिन्दुओ को ईसाई बनानेका और कमीशन
दिया जाता है । औसतन 200 हिन्दुओको ईसाई धर्म परिवर्तन न करने के कारण जला दिया जाता है । यह सरकारी आंकड़ा है असली संख्या इससे ज्यादा हो सकती है ।

Wednesday, May 15, 2013

मनरेगा योजना राहुल गाँधी के चुनाव छेत्र में निष्फल रही ..

कांग्रेसी कार्यकर्ताओ के लुट के लिए बनी मनरेगा योजना राहुल गाँधी के चुनाव छेत्र में निष्फल रही ..

मित्रो, राहुल गाँधी अपनी हर सभा में बार बार मनरेगा का नाम लेते है और इसे एक ड्रीम प्रोजेक्ट बताते है ..लेकिन एक आरटीआई से खुलासा हुआ है की ये योजना खुद राहुल गाँधी के चुनाव एरिया अमेठी में ही फेल हो गयी है |

अमेठी में कुल 2,37,853 लोगो के पास मनरेगा का जॉबकार्ड है | और वर्ष 2012-13 के दौरान कुल 87,743 लोग मनरेगा में काम मांगने आये थे ... नियमानुसार हर घर से कम से कम एक मेम्बर को साल में १०० दिन की मजदूरी मिलनी चाहिए ...लेकिन सिर्फ 1250 लोगो को ही १०० दिन का रोजगार मिला

Tuesday, May 14, 2013

कश्मीर पर हमारी सरकार के निकम्मेपने का कारण

हम लोग आए दिन कश्मीर मे हुए दंगों, कत्लेयामों को ले कर चिल्लाते रहते हैं, भूषण को मारा क्यूंकी वो कश्मीर को पाकिस्तान को देने की या आजाद करने की मांग कर रहा था, कश्मीरियत को ले कर पता नहीं क्या क्या सोचते रहते हैं और प्रतिदिन बिना नागा किए उस पर चिंतन और मनन करते रहते हैं।

क्या आपने सोचा है कभी की कश्मीर मे सीमा उल्लंघन की इतनी घटनाओं के बाद भी हमारी सरकार कोई कदम क्यूँ नहीं उठाती है.....तो लीजिये देखिये हमारी सरकार के निकम्मेपने का कारण जिसके चलते हमारी सरकार चुप रहने को बाध्य है भले ही विपक्ष कितना भी चिल्ला ले।

मौजूदा सरकार की माता श्री, माननीय सोनिया गांधी जी "The Forum of Democratic Leaders in the Asia-Pacific (FDL-AP)" नामक संस्था जो की कश्मीर के आजादी की बात करती है की सह-अध्यक्षा हैं।

अब जब देश की सांसद महोदया होने के साथ-साथ सोनिया जी तो कॉंग्रेस की जगत माता के रूप मे जानी जाती हैं तो ऐसे मे क्या किसी कोंग्रेसी की इतनी हिम्मत होगी की वो कश्मीर पर कभी अपने विचार रख सके जबकि उनकी माता श्री ही कश्मीर को आजाद देखना चाहती है और ऐसा प्रतीत होता है की इन महोदया को तकलीफ होती है कश्मीर को भारत का अंग देख कर। तो ऐसे मे कश्मीर मे हमारे सैनिकों का मरना तो जारी रहेगा ही साथ ही हमारी माताओं की गोद सुनी होती रहेगी और नवविवाहित बहने विधवा होती रहेंगी। लेकिन इन माताओं और विधवाओं की चीत्कारों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है क्यूंकी 10 जनपथ ही चाहता है की कश्मीर भारत से अलग हो जाये इसके लिए चाहे कुछ भी करना हो।

अब ऐसे मे एक सवाल उठता है की देश को तोड़ने की बात करना क्या देशद्रोह मे नहीं आता है?

क्यूँ अभी तक सोनिया गांधी पर देशद्रोह का मुकदमा नहीं हुआ?

किस हैसियत से सोनिया गांधी संसद मे बैठती हैं?

अब आप खुद ही निम्नांकित लिंक पर जाएँ और देखें सोनिया गांधी की सच्चाई और फैसला करें

http://www.nancho.net/fdlap/fdlhome.html#essayarc

नकली नोट - रिजर्व बैंक और सरकार

एक जानकारी जो पूरे देश से छुपा ली गई...


देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर सीबीआई ने छापा डाला. उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले. वरिष्ठ अधिकारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की. दरअसल सीबीआई ने नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया. या शायद सीबीआई ने भारत सरकार को इ...स घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं. देश अंधेरे में और देश को तबाह करने वाले रोशनी में हैं. आइए, आपको
आज़ाद भारत के सबसे बड़े आपराधिक षड्‌यंत्र के बारे में बताते हैं, जिसे हमने पांच महीने की तलाश के बाद आपके सामने रखने का फ़ैसला किया है. कहानी है रिज़र्व बैंक के माध्यम से देश के अपराधियों द्वारा नक़ली नोटों का कारोबार करने की.
नक़ली नोटों के कारोबार ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह अपने जाल में जकड़ लिया है. आम जनता के हाथों में नक़ली नोट हैं, पर उसे ख़बर तक नहीं है. बैंक में नक़ली नोट मिल रहे हैं, एटीएम नक़ली नोट उगल रहे हैं. असली-नक़ली नोट पहचानने वाली मशीन नक़ली नोट को असली बता रही है. इस देश में क्या हो रहा है, यह समझ के बाहर है. चौथी दुनिया की तहक़ीक़ात से यह पता चला है कि जो कंपनी भारत के लिए करेंसी छापती रही, वही 500 और 1000 के नक़ली नोट भी छाप रही है. हमारी तहक़ीक़ात से यह अंदेशा होता है कि देश की सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जाने-अनजाने में नोट छापने वाली विदेशी कंपनी के पार्टनर बन चुके हैं. अब सवाल यही है कि इस ख़तरनाक साज़िश पर देश की सरकार और एजेंसियां क्यों चुप हैं?

एक जानकारी जो पूरे देश से छुपा ली गई, अगस्त 2010 में सीबीआई की टीम ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वाल्ट में छापा मारा. सीबीआई के अधिकारियों का दिमाग़ उस समय सन्न रह गया, जब उन्हें पता चला कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के ख़ज़ाने में नक़ली नोट हैं. रिज़र्व बैंक से मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिसे पाकिस्तान की खु़फिया एजेंसी नेपाल के रास्ते भारत भेज रही है. सवाल यह है कि भारत के रिजर्व बैंक में नक़ली नोट कहां से आए? क्या आईएसआई की पहुंच रिज़र्व बैंक की तिजोरी तक है या फिर कोई बहुत ही भयंकर साज़िश है, जो हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को खोखला कर चुकी है. सीबीआई इस सनसनीखेज मामले की तहक़ीक़ात कर रही है. छह बैंक कर्मचारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की है. इतने महीने बीत जाने के बावजूद किसी को यह पता नहीं है कि जांच में क्या निकला? सीबीआई और वित्त मंत्रालय को देश को बताना चाहिए कि बैंक अधिकारियों ने जांच के दौरान क्या कहा? नक़ली नोटों के इस ख़तरनाक खेल पर सरकार, संसद और जांच एजेंसियां क्यों चुप है तथा संसद अंधेरे में क्यों है?

अब सवाल यह है कि सीबीआई को मुंबई के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया में छापा मारने की ज़रूरत क्यों पड़ी? रिजर्व बैंक से पहले नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार और उत्तर प्रदेश के क़रीब 70-80 बैंकों में छापा पड़ा. इन बैंकों में इसलिए छापा पड़ा, क्योंकि जांच एजेंसियों को ख़बर मिली है कि पाकिस्तान की खु़फ़िया एजेंसी आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत में नक़ली नोट भेज रही है. बॉर्डर के इलाक़े के बैंकों में नक़ली नोटों का लेन-देन हो रहा है. आईएसआई के रैकेट के ज़रिए 500 रुपये के नोट 250 रुपये में बेचे जा रहे हैं. छापे के दौरान इन बैंकों में असली नोट भी मिले और नक़ली नोट भी. जांच एजेंसियों को लगा कि नक़ली नोट नेपाल के ज़रिए बैंक तक पहुंचे हैं, लेकिन जब पूछताछ हुई तो सीबीआई के होश उड़ गए. कुछ बैंक अधिकारियों की पकड़-धकड़ हुई. ये बैंक अधिकारी रोने लगे, अपने बच्चों की कसमें खाने लगे. उन लोगों ने बताया कि उन्हें नक़ली नोटों के बारे में कोई जानकारी नहीं, क्योंकि ये नोट रिजर्व बैंक से आए हैं. यह किसी एक बैंक की कहानी होती तो इसे नकारा भी जा सकता था, लेकिन हर जगह यही पैटर्न मिला. यहां से मिली जानकारी के बाद ही सीबीआई ने फ़ैसला लिया कि अगर नक़ली नोट रिजर्व बैंक से आ रहे हैं तो वहीं जाकर देखा जाए कि मामला क्या है. सीबीआई ऱिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पहुंची, यहां उसे नक़ली नोट मिले. हैरानी की बात यह है कि रिज़र्व बैंक में मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिन्हें आईएसआई नेपाल के ज़रिए भारत भेजती है.

रिज़र्व बैंक आफ इंडिया में नक़ली नोट कहां से आए, इस गुत्थी को समझने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में नक़ली नोटों के मामले को समझना ज़रूरी है. दरअसल हुआ यह कि आईएसआई की गतिविधियों की वजह से यहां आएदिन नक़ली नोट पकड़े जाते हैं. मामला अदालत पहुंचता है. बहुत सारे केसों में वकीलों ने अनजाने में जज के सामने यह दलील दी कि पहले यह तो तय हो जाए कि ये नोट नक़ली हैं. इन वकीलों को शायद जाली नोट के कारोबार के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था, स़िर्फ कोर्ट से व़क्त लेने के लिए उन्होंने यह दलील दी थी. कोर्ट ने जब्त हुए नोटों को जांच के लिए सरकारी लैब भेज दिया, ताकि यह तय हो सके कि ज़ब्त किए गए नोट नक़ली हैं. रिपोर्ट आती है कि नोट असली हैं. मतलब यह कि असली और नक़ली नोटों के कागज, इंक, छपाई और सुरक्षा चिन्ह सब एक जैसे हैं. जांच एजेंसियों के होश उड़ गए कि अगर ये नोट असली हैं तो फिर 500 का नोट 250 में क्यों बिक रहा है. उन्हें तसल्ली नहीं हुई. फिर इन्हीं नोटों को टोक्यो और हांगकांग की लैब में भेजा गया. वहां से भी रिपोर्ट आई कि ये नोट असली हैं. फिर इन्हें अमेरिका भेजा गया. नक़ली नोट कितने असली हैं, इसका पता तब चला, जब अमेरिका की एक लैब ने यह कहा कि ये नोट नक़ली हैं. लैब ने यह भी कहा कि दोनों में इतनी समानताएं हैं कि जिन्हें पकड़ना मुश्किल है और जो विषमताएं हैं, वे भी जानबूझ कर डाली गई हैं और नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है. अमेरिका की लैब ने जांच एजेंसियों को पूरा प्रूव दे दिया और तरीक़ा बताया कि कैसे नक़ली नोटों को पहचाना जा सकता है. इस लैब ने बताया कि इन नक़ली नोटों में एक छोटी सी जगह है, जहां छेड़छाड़ हुई है. इसके बाद ही नेपाल बॉर्डर से सटे बैंकों में छापेमारी का सिलसिला शुरू हुआ. नक़ली नोटों की पहचान हो गई, लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि नेपाल से आने वाले 500 एवं 1000 के नोट और रिज़र्व बैंक में मिलने वाले नक़ली नोट एक ही तरह के कैसे हैं. जिस नक़ली नोट को आईएसआई भेज रही है, वही नोट रिजर्व बैंक में कैसे आया. दोनों जगह पकड़े गए नक़ली नोटों के काग़ज़, इंक और छपाई एक जैसी क्यों है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के 500 और 1000 के जो नोट हैं, उनकी क्वालिटी ऐसी है, जिसे आसानी से नहीं बनाया जा सकता है और पाकिस्तान के पास वह टेक्नोलॉजी है ही नहीं. इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जहां से ये नक़ली नोट आईएसआई को मिल रहे हैं, वहीं से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी सप्लाई हो रहे हैं. अब दो ही बातें हो सकती हैं. यह जांच एजेंसियों को तय करना है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों की मिलीभगत से नक़ली नोट आया या फिर हमारी अर्थव्यवस्था ही अंतरराष्ट्रीय मा़फ़िया गैंग की साज़िश का शिकार हो गई है. अब सवाल उठता है कि ये नक़ली नोट छापता कौन है.

हमारी तहक़ीक़ात डे ला रू नाम की कंपनी तक पहुंच गई. जो जानकारी हासिल हुई, उससे यह साबित होता है कि नक़ली नोटों के कारोबार की जड़ में यही कंपनी है. डे ला रू कंपनी का सबसे बड़ा करार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ था, जिसे यह स्पेशल वॉटरमार्क वाला बैंक नोट पेपर सप्लाई करती रही है. पिछले कुछ समय से इस कंपनी में भूचाल आया हुआ है. जब रिजर्व बैंक में छापा पड़ा तो डे ला रू के शेयर लुढ़क गए. यूरोप में ख़राब करेंसी नोटों की सप्लाई का मामला छा गया. इस कंपनी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को कुछ ऐसे नोट दे दिए, जो असली नहीं थे. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की टीम इंग्लैंड गई, उसने डे ला रू कंपनी के अधिकारियों से बातचीत की. नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने हम्प्शायर की अपनी यूनिट में उत्पादन और आगे की शिपमेंट बंद कर दी. डे ला रू कंपनी के अधिकारियों ने भरोसा दिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहा कि कंपनी से जुड़ी कई गंभीर चिंताएं हैं. अंग्रेजी में कहें तो सीरियस कंसर्नस. टीम वापस भारत आ गई.

डे ला रू कंपनी की 25 फीसदी कमाई भारत से होती है. इस ख़बर के आते ही डे ला रू कंपनी के शेयर धराशायी हो गए. यूरोप में हंगामा मच गया, लेकिन हिंदुस्तान में न वित्त मंत्री ने कुछ कहा, न ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कोई बयान दिया. रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों ने जो चिंताएं बताईं, वे चिंताएं कैसी हैं. इन चिंताओं की गंभीरता कितनी है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ डील बचाने के लिए कंपनी ने माना कि भारत के रिज़र्व बैंक को दिए जा रहे करेंसी पेपर के उत्पादन में जो ग़लतियां हुईं, वे गंभीर हैं. बाद में कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स हसी को 13 अगस्त, 2010 को इस्ती़फा देना पड़ा. ये ग़लतियां क्या हैं, सरकार चुप क्यों है, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया क्यों ख़ामोश है. मज़ेदार बात यह है कि कंपनी के अंदर इस बात को लेकर जांच चल रही थी और एक हमारी संसद है, जिसे कुछ पता नहीं है.

5 जनवरी, 2011 को यह ख़बर आई कि भारत सरकार ने डे ला रू के साथ अपने संबंध ख़त्म कर लिए. पता यह चला कि 16,000 टन करेंसी पेपर के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू की चार प्रतियोगी कंपनियों को ठेका दे दिया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू को इस टेंडर में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित भी नहीं किया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इतना बड़ा फै़सला क्यों लिया. इस फै़सले के पीछे तर्क क्या है. सरकार ने संसद को भरोसे में क्यों नहीं लिया. 28 जनवरी को डे ला रू कंपनी के टिम कोबोल्ड ने यह भी कहा कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ उनकी बातचीत चल रही है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि डे ला रू का अब आगे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ कोई समझौता होगा या नहीं. इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी डे ला रू से कौन बात कर रहा है और क्यों बात कर रहा है. मज़ेदार बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ख़ामोश रहा.

इस तहक़ीक़ात के दौरान एक सनसनीखेज सच सामने आया. डे ला रू कैश सिस्टम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 2005 में सरकार ने दफ्तर खोलने की अनुमति दी. यह कंपनी करेंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में डील करती है. यह भारत में असली और नक़ली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बेचती है. मतलब यह है कि यही कंपनी नक़ली नोट भारत भेजती है और यही कंपनी नक़ली नोटों की जांच करने वाली मशीन भी लगाती है. शायद यही वजह है कि देश में नक़ली नोट भी मशीन में असली नज़र आते हैं. इस मशीन के सॉफ्टवेयर की अभी तक जांच नहीं की गई है, किसके इशारे पर और क्यों? जांच एजेंसियों को अविलंब ऐसी मशीनों को जब्त करना चाहिए, जो नक़ली नोटों को असली बताती हैं. सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि डे ला रू कंपनी के रिश्ते किन-किन आर्थिक संस्थानों से हैं. नोटों की जांच करने वाली मशीन की सप्लाई कहां-कहां हुई है.

हमारी जांच टीम को एक सूत्र ने बताया कि डे ला रू कंपनी का मालिक इटालियन मा़िफया के साथ मिलकर भारत के नक़ली नोटों का रैकेट चला रहा है. पाकिस्तान में आईएसआई या आतंकवादियों के पास जो नक़ली नोट आते हैं, वे सीधे यूरोप से आते हैं. भारत सरकार, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और देश की जांच एजेंसियां अब तक नक़ली नोटों पर नकेल इसलिए नहीं कस पाई हैं, क्योंकि जांच एजेंसियां अब तक इस मामले में पाकिस्तान, हांगकांग, नेपाल और मलेशिया से आगे नहीं देख पा रही हैं. जो कुछ यूरोप में हो रहा है, उस पर हिंदुस्तान की सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया चुप है.

अब सवाल उठता है कि जब देश की सबसे अहम एजेंसी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताया, तब सरकार ने क्या किया. जब डे ला रू ने नक़ली नोट सप्लाई किए तो संसद को क्यों नहीं बताया गया. डे ला रू के साथ जब क़रार ़खत्म कर चार नई कंपनियों के साथ क़रार हुए तो विपक्ष को क्यों पता नहीं चला. क्या संसद में उन्हीं मामलों पर चर्चा होगी, जिनकी रिपोर्ट मीडिया में आती है. अगर जांच एजेंसियां ही कह रही हैं कि नक़ली नोट का काग़ज़ असली नोट के जैसा है तो फिर सप्लाई करने वाली कंपनी डे ला रू पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई. सरकार को किसके आदेश का इंतजार है. समझने वाली बात यह है कि एक हज़ार नोटों में से दस नोट अगर जाली हैं तो यह स्थिति देश की वित्तीय व्यवस्था को तबाह कर सकती है. हमारे देश में एक हज़ार नोटों में से कितने नोट जाली हैं, यह पता कर पाना भी मुश्किल है, क्योंकि जाली नोट अब हमारे बैंकों और एटीएम मशीनों से निकल रहे हैं.
डे ला रू का नेपाल और आई एस आई कनेक्शन

कंधार हाईजैक की कहानी बहुत पुरानी हो गई है, लेकिन इस अध्याय का एक ऐसा पहलू है, जो अब तक दुनिया की नज़र से छुपा हुआ है. इस खउ-814 में एक ऐसा शख्स बैठा था, जिसके बारे में सुनकर आप दंग रह जाएंगे. इस आदमी को दुनिया भर में करेंसी किंग के नाम से जाना जाता है. इसका असली नाम है रोबेर्टो ग्योरी. यह इस जहाज में दो महिलाओं के साथ स़फर कर रहा था. दोनों महिलाएं स्विट्जरलैंड की नागरिक थीं. रोबेर्टो़ खुद दो देशों की नागरिकता रखता है, जिसमें पहला है इटली और दूसरा स्विट्जरलैंड. रोबेर्टो को करेंसी किंग इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह डे ला रू नाम की कंपनी का मालिक है. रोबेर्टो ग्योरी को अपने पिता से यह कंपनी मिली. दुनिया की करेंसी छापने का 90 फी़सदी बिजनेस इस कंपनी के पास है. यह कंपनी दुनिया के कई देशों कें नोट छापती है. यही कंपनी पाकिस्तान की आईएसआई के लिए भी काम करती है. जैसे ही यह जहाज हाईजैक हुआ, स्विट्जरलैंड ने एक विशिष्ट दल को हाईजैकर्स से बातचीत करने कंधार भेजा. साथ ही उसने भारत सरकार पर यह दबाव बनाया कि वह किसी भी क़ीमत पर करेंसी किंग रोबेर्टो ग्योरी और उनके मित्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. ग्योरी बिजनेस क्लास में स़फर कर रहा था. आतंकियों ने उसे प्लेन के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठा दिया. लोग परेशान हो रहे थे, लेकिन ग्योरी आराम से अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था. उसके पास सैटेलाइट पेन ड्राइव और फोन थे.यह आदमी कंधार के हाईजैक जहाज में क्या कर रहा था, यह बात किसी की समझ में नहीं आई है. नेपाल में ऐसी क्या बात है, जिससे स्विट्जरलैंड के सबसे अमीर व्यक्ति और दुनिया भर के नोटों को छापने वाली कंपनी के मालिक को वहां आना पड़ा. क्या वह नेपाल जाने से पहले भारत आया था. ये स़िर्फ सवाल हैं, जिनका जवाब सरकार के पास होना चाहिए. संसद के सदस्यों को पता होना चाहिए, इसकी जांच होनी चाहिए थी. संसद में इस पर चर्चा होनी चाहिए थी. शायद हिंदुस्तान में फैले जाली नोटों का भेद खुल जाता.
नकली नोंटों का मायाजाल

सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि 2006 से 2009 के बीच 7.34 लाख सौ रुपये के नोट, 5.76 लाख पांच सौ रुपये के नोट और 1.09 लाख एक हज़ार रुपये के नोट बरामद किए गए. नायक कमेटी के मुताबिक़, देश में लगभग 1,69,000 करोड़ जाली नोट बाज़ार में हैं. नक़ली नोटों का कारोबार कितना ख़तरनाक रूप ले चुका है, यह जानने के लिए पिछले कुछ सालों में हुईं कुछ महत्वपूर्ण बैठकों के बारे में जानते हैं. इन बैठकों से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश की एजेंसियां सब कुछ जानते हुए भी बेबस और लाचार हैं. इस धंधे की जड़ में क्या है, यह हमारे ख़ुफिया विभाग को पता है. नक़ली नोटों के लिए बनी ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारत नक़ली नोट प्रिंट करने वालों के स्रोत तक नहीं पहुंच सका है. नोट छापने वाले प्रेस विदेशों में लगे हैं. इसलिए इस मुहिम में विदेश मंत्रालय की मदद लेनी होगी, ताकि उन देशों पर दबाव डाला जा सके. 13 अगस्त, 2009 को सीबीआई ने एक बयान दिया कि नक़ली नोट छापने वालों के पास भारतीय नोट बनाने वाला गुप्त सांचा है, नोट बनाने वाली स्पेशल इंक और पेपर की पूरी जानकारी है. इसी वजह से देश में असली दिखने वाले नक़ली नोट भेजे जा रहे हैं. सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा कि नक़ली नोटों के मामलों की तहक़ीक़ात के लिए देश की कई एजेंसियों के सहयोग से एक स्पेशल टीम बनाई गई है. 13 सितंबर, 2009 को नॉर्थ ब्लॉक में स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के हेड क्वार्टर में एक मीटिंग हुई थी, जिसमें इकोनोमिक इंटेलिजेंस की सारी अहम एजेंसियों ने हिस्सा लिया. इसमें डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, वित्त मंत्रालय, सीबीआई और सेंट्रल इकोनोमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि जाली नोटों का कारोबार अब अपराध से बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गया है. इससे पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, आईबी, डीआरआई, ईडी, सीबीआई, सीईआईबी, कस्टम और अर्धसैनिक बलों के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस बैठक में यह तय हुआ कि ब्रिटेन के साथ यूरोप के दूसरे देशों से इस मामले में बातचीत होगी, जहां से नोट बनाने वाले पेपर और इंक की सप्लाई होती है. तो अब सवाल उठता है कि इतने दिनों बाद भी सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, जांच एजेंसियों को किसके आदेश का इंतजार है?- 

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Monday, May 13, 2013

राजीव शुक्ल


कभी कानपूर में पत्रकारिता कम दलाली करने वाला राजीव शुक्ल आखिर आज आईपीएल कमिश्नर के साथ साथ केन्द्रीयमंत्री कैसे बन गया ?? जबकि इसकी औकात एक नगर निगम के कार्पोरेटर का भी चुनाव जितने की नही है |

इसके बारे में एक बार इंडिया टुडे ने भी पूरा लेख लिखा था "द ओवर एचीवर" | एक जमाने में ये प्रियंका गाँधी के बच्चो का पोतड़ा धोता था |


मित्रो, राजीव गाँधी अपने मित्र अमिताभ बच्चन को राजनीती में लाये ... उस समय राजीव के मंत्रिमंडल में विश्वनाथ प्रताप सिंह रक्षा मंत्री थे | फिर जब बोफोर्स की दलाली की वजह से वीपी सिंह कांग्रेस छोडकर जनता दल बना लिए | फिर जल्दी ही इलाहाबाद की राजनीति में अमिताभ बच्चन और विश्वनाथ प्रताप सिंह आमने-सामने हो गए. बाद में बोफ़ोर्स के लपेटे में अमिताभ बच्चन भी आ चले. सांसद पद से उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया और राजनीति को प्रणाम किया. इसी बीच एक और घटना घटी. इधर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव भी विश्वनाथ प्रताप सिंह से किसी बात पर खफ़ा हुए. और उनके डहि्या ट्र्स्ट में घपले की खबर लेकर दिल्ली के अखबारों में घूमने लगे. किसी ने भाव नहीं दिया तो उन्होंने लगभग साइक्लोस्टाईल करवा कर इसे सभी अखबारों और राजनीतिक गलियारों में भी बंटवा दिया. तब भी किसी ने इसे बहुत तरजीह नहीं दिया. पर अचानक रविवार के एक अंक में राजीव शुक्ला के नाम से डहि्या ट्र्स्ट पर कवर स्टोरी छपी मिली. लोग हैरान थे. कि यह राजीव शुक्ला तो विश्वनाथ प्रताप सिंह का बड़ा सगा, बड़ा खास था. फिर भी एक साइक्लोस्टाइल बंटे कागज को कवर स्टोरी लिख दिया?

बहरहाल, राजीव शुक्ला की 'सफलता' में रविवार की यह डहि्या ट्र्स्ट की कवर स्टोरी मील का पत्थर साबित हुई. नतीज़ा यह हुआ कि अमिताभ बच्चन को राजीव शुक्ला बड़े काम की चीज़ लगे. और अपने पास बुलवाया. जल्दी ही राजीव शुक्ला को उन्होंने राजीव गांधी से भी मिलवा दिया. कहते हैं कि राजीव गांधी ने ही अपनी मित्र अनुराधा प्रसाद से राजीव शुक्ला को मिलवाया. बाद में शादी भी करवा दी. इसके बाद राजीव शुक्ला ने जो उड़ान भरी वह लगातार जारी है. उन्हीं दिनों राजीव गांधी एक बार कानपुर आए तो खुली जीप में उन के साथ एक तरफ अनुराधा प्रसाद खडी थीं हाथ जोड़े तो दूसरी तरफ राजीव शुक्ला. बाकी नेता आगे-पीछे.
कभी कानपूर में पत्रकारिता कम दलाली करने वाला राजीव शुक्ल आखिर आज आईपीएल कमिश्नर के साथ साथ केन्द्रीयमंत्री कैसे बन गया ?? जबकि इसकी औकात एक नगर निगम के कार्पोरेटर का भी चुनाव जितने की नही है |

इसके बारे में एक बार इंडिया टुडे ने भी पूरा लेख लिखा था "द ओवर एचीवर" | एक जमाने में ये प्रियंका गाँधी के बच्चो का पोतड़ा धोता था |


मित्रो, राजीव गाँधी अपने मित्र अमिताभ बच्चन को राजनीती में लाये ... उस समय राजीव के मंत्रिमंडल में विश्वनाथ प्रताप सिंह रक्षा मंत्री थे | फिर जब बोफोर्स की दलाली की वजह से वीपी सिंह कांग्रेस छोडकर जनता दल बना लिए | फिर जल्दी ही इलाहाबाद की राजनीति में अमिताभ बच्चन और विश्वनाथ प्रताप सिंह आमने-सामने हो गए. बाद में बोफ़ोर्स के लपेटे में अमिताभ बच्चन भी आ चले. सांसद पद से उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया और राजनीति को प्रणाम किया. इसी बीच एक और घटना घटी. इधर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव भी विश्वनाथ प्रताप सिंह से किसी बात पर खफ़ा हुए. और उनके डहि्या ट्र्स्ट में घपले की खबर लेकर दिल्ली के अखबारों में घूमने लगे. किसी ने भाव नहीं दिया तो उन्होंने लगभग साइक्लोस्टाईल करवा कर इसे सभी अखबारों और राजनीतिक गलियारों में भी बंटवा दिया. तब भी किसी ने इसे बहुत तरजीह नहीं दिया. पर अचानक रविवार के एक अंक में राजीव शुक्ला के नाम से डहि्या ट्र्स्ट पर कवर स्टोरी छपी मिली. लोग हैरान थे. कि यह राजीव शुक्ला तो विश्वनाथ प्रताप सिंह का बड़ा सगा, बड़ा खास था. फिर भी एक साइक्लोस्टाइल बंटे कागज को कवर स्टोरी लिख दिया?

बहरहाल, राजीव शुक्ला की 'सफलता' में रविवार की यह डहि्या ट्र्स्ट की कवर स्टोरी मील का पत्थर साबित हुई. नतीज़ा यह हुआ कि अमिताभ बच्चन को राजीव शुक्ला बड़े काम की चीज़ लगे. और अपने पास बुलवाया. जल्दी ही राजीव शुक्ला को उन्होंने राजीव गांधी से भी मिलवा दिया. कहते हैं कि राजीव गांधी ने ही अपनी मित्र अनुराधा प्रसाद से राजीव शुक्ला को मिलवाया. बाद में शादी भी करवा दी. इसके बाद राजीव शुक्ला ने जो उड़ान भरी वह लगातार जारी है. उन्हीं दिनों राजीव गांधी एक बार कानपुर आए तो खुली जीप में उन के साथ एक तरफ अनुराधा प्रसाद खडी थीं हाथ जोड़े तो दूसरी तरफ राजीव शुक्ला. बाकी नेता आगे-पीछे.

Sunday, May 12, 2013

कर्नाटक जीत का तोहफा

कर्नाटक जीत का तोहफा --

कांग्रेस ने देश को अपनी कर्नाटक जीत का तोहफा देश का क्षेत्रफल कम करके दे दिया है ---लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी से मात्र २ किलोमीटर पीछे हटने के लिए चुमार पोस्ट का अगर सौदा नहीं हुआ है (जैसा की कांग्रेस सरकार दावा कर रही है ) तो फिर क्यूँ चुमार सेक्टर पर सेना अपने बंकर तोड़ रही है ---?
चीनी फौज लद्दाख से इसी शर्त पर हटने को राजी हुई कि भारत चुमार से अपना पोस्ट हटा लेगा. दरअसल, पूर्वी लद्दाख के चुमार पोस्‍ट से भारतीय फौज चीनी हाईवे की गतिविधियों पर नजर रखती हैं. चीन बहुत पहले से भारत से चुमार का फॉरवर्ड ऑब्जर्वेशन पोस्ट हटाने की मांग करता रहा है.
उल्लेखनीय है की आज से दो दिन के लिए विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद चाइना के दौरे पर हैं --और आज से ही चुमार पोस्ट खाली होने लगी ---
बहुत साफ़ है --हम डर गए ----हमारा देश एक बार फिर से हार गया ---सबसे मजेदार बात तो ये है की इस कूटनीति हार का समर्थन आज भी देश के करोणों लोग करतें हैं और कांग्रेस को वोट करके इसकी मदद करतें हैं ----
जय जन जय भारत

Tuesday, May 7, 2013

क्या आप जानते हैं पिछले करीब 100 वर्षों में भारत के कितनी बार तुकडे किये गए

क्या आप जानते हैं पिछले 100 वर्षों में भारत के कितनी बार टुकडे किये गए और उसके पीछे किसकी सरकार और सोच रही है ......

सन 1911 में भारत से श्री लंका अलग हुआ ,जिसको तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं का समर्थन प्राप्त था

सन 1947 में भारत से बर्मा -म्यांमार अलग हुआ ,

सन 1947 में भारत से पाकिस्तान अलग हुआ । कारण कांग्रेस ही थी

सन 1948 में भारत से आज़ाद कश्मीर काटकर अलग कर दिया गया और नेहरु जी की नीतियों ने सरदार पटेल के हाथ बांधे रखे

सन 1950 में भारत से तिब्बत को काटकर अलग कर दिया गया और नेताओं ने मुह बंद रखा

सन 1954 में बेरुबादी को काट कर अलग कर दिया गया

सन 1957 में चीन ने भारत के कुछ हिस्से हड़प लिए और नेहरु ने कहा की यह घास फूंस वाली जगह थी

सन 19262 में चीन ने अक्साई चीन का 62000 वर्ग मिल क्षेत्र भारत से छीन लिया ,और नेहरु जी हिंदी चीनी भाई-भाई कहते रहे । जब हमारी सेनाओं ने चीन से लड़ाई लड़ने का निर्णय किया और कुछ मोर्चों पर जीत की स्थिति में थी तो इन्ही नेहरु ने सीज फायर करा दिया

सन 1963 में टेबल आइलैंड पर बर्मा ने कब्ज़ा कर लिया ,और हम खामोश रहे । वहां पर म्यामांर ने हवाई अड्डा बना रखा है

सन 1963 में ही गुजरात का कच्छ क्षेत्र छारी फुलाई को पाकिस्तान को दे दिया गया

सन 1972 में भारत ने कच्छ तिम्बु द्वीप सर लंका को दे दिया

सन 1982 में भारत के अरुणांचल के कुछ हिस्से पर चीन ने कब्ज़ा कर लिया , और हम बात करते रहे

सन 1992 में भारत का तीन बीघा जमीनी इलाका बांगला देश ने लेकर चीन को सौंप दिया ।

सन 2012 मे भी बांग्लादेश को कुछ वर्गमील इलाका कॉंग्रेस ने दिया और कहा की ये दलदली इलाका था

इसके अलावा भी अनेक छोटी बड़ी घटनाएं होती रहती हैं जिनका रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है , जैसे कि हाल ही की चीन की घटना है , जिस पर कोई अधिकारिक दस्तावेज अभी जारी नहीं किया गया है।

वैसे एक बात और ध्यान देने वाली है की जब भारत की धरती यूंही बंजर, घास-फूस वाली तथा दलदली है तो इन कोंग्रेसियों को हमारी इस धरती मे इतनी दिलचस्पी क्यूँ है। या जैसे अमुक सारे देशों से ये कोंग्रेसी खतम हो चुके हैं वैसे ही यहाँ से भी खतम हो कर ही मानेंगे।

अब आप स्वयं विचार करें की हम कहाँ जा रहे हैं ?

Saturday, May 4, 2013

अगर आप कत्ल खाना खोलते हो तो

1. अगर आप कत्ल खाना खोलते हो तो ५ साल तक इन्कम 
टेक्स माफ़ी है l

2. केंद्र सरकार ५० करोड़ तक 
सबसीडी देती है, अगर आप कत्लखान खोलते है 
तो l

3. दिल्ली सरकार इस मटन को एक्सपोर्ट करने
के लिए रास्ते में जितना सफर करना पड़ता है, पर
किलोमीटर ट्रांसपोर्टटेशन एलाउंस ये दिल्ली की सरकार देती है।



http://www.youtube.com/watch?v=733RlrQ42YU

चढ़ा दिया कर्ज

वाह रे कांग्रेस तेरी महिमा अपरम्पार.....करती रह ऐसे ही नरसंहार

भारत में १९५० से लेकर १९९५ तक में छोटे बड़े मिला कर ११९४ दंगे हुए

पर जो दिल्ली में ३१ अक्तूबर १९८४ को इंदिरा गाँधी के मरने के बाद दंगा चला वो अब तक का सबसे वीभत्स सामूहिक हत्याकांड था|

ये वीभत्स हत्याकांड उस जनसमूह के साथ हुआ था जिसने कुछ समय पहले देश के बंटवारे का दंश झेला था लेकिन किसी ने उस जन समूह की सुध नहीं ली थी तथा यही जन समूह जिसे हम सिख कहते हैं

भारतीय सेना में सबसे ज्यादा बढ़ चढ़ कर आते हैं और इनके नाम से सिख रेजिमेंट तक है जिसने एक समय भारत की सीमा को लाहौर तक खिंच दिया था|

गाँधी के मरने के बाद दूरदर्शन ने राजीव गाँधी का साक्क्षातकार लिया उ जिसमे

राजीव गाँधी ने कहा की "जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिल जाती है और छोटे पौधे कुचल जाते हैं|"


एक प्रधानमंत्री के द्वारा दिया गया ये अब तक का सबसे शर्मनाक बयान था और इस बयान ने इस छिटपुट हो रही हत्यायों को एक वीभत्स सामूहिक हत्याकांड में तब्दील कर दिया क्यूंकि देश का तत्कालीन प्रधानमंत्री यही चाहता था|

राजीव गाँधी के इस बयान से नेताओं को कमाने का और राजीव गाँधी के सानिध्य में आने का मौका दिख गया|

इसमें थे सांसद "सज्जन कुमार", तत्कालीन कैबिनेट मंत्री "जगदीश टाइटलर", तत्कालीन कैबिनेट मंत्री "हरकिशन लाल भगत" में तो आतंरिक होड़ मच गई की कौन ज्यादा हत्याएं करवाता है

(जैसे उनको हत्याएं करवाने का इनाम मिलने वाला था)|

इन तीनो नेताओं ने अपने गुर्गों को यहाँ तक कह दिया था की "एक पगड़ी लाने पर १००० रूपया और एक सरदार का घर जलने पर १०००० रूपया"|





इन तीनो नेताओं को इन हत्यायों का इनाम भी मिला की ये लोग सालों तक केंद्रीय मंत्री रहे और दंगे के गवाहों को मौत के घाट उतरवाते रहे|

जो भी अगर ये कहता हुआ मिलता है की दिल्ली का ये सामूहिक नरसंहार सरकार के द्वारा प्रायोजित नहीं था तो एक घटना उन लोगो के लिए है की एक सिख जिसका नाम "अमर सिंह" था वो इस नरसंहार से बच गया| वो सिख बचा कैसे तो उसके हिन्दू पडोसी ने उसे अपने घर में शरण दिया और जब कत्लेआम मचाती हुई भीड़ अमर सिंह नाम के सिख को ढुंढते हुए पहुंची तो उस हिन्दू ने ये बोल दिया की अमर सिंह मर चूका है|
 पर उस कातिल भीड़ को इससे संतोष नहीं हुआ और वो अमर सिंह का मृत शरीर देखने की बात करने लगे तब उस हिन्दू ने कहा की उसके शरीर को और लोग उठा कर ले गए हैं| ये सुन कर उस समय तो भीड़ चली गई पर थोड़े समय में फिर पहुंची और उस हिन्दू को एक लिस्ट दिखाते हुए कहा की इस लिस्ट के मुताबिक अमर सिंह का मरा हुआ शरीर अभी तक किसी ने भी नहीं उठाया है|

अब ऐसी लिस्ट बन कहाँ रही थी जिसमे चुन-चुन कर सिखों को मारा जा रहा था और उनके मरे हुए शरीर को किसको दिखाया जा रहा था और कौन बना रहा था वो लिस्ट|

ये बात सोचने वाली है! लेकिन इस घटना से पता चल जाता है की ये सामूहिक नरसंहार कितने व्यवस्थित ढंग से चलाया जा रहा था|

जब इस महा नरसंहार की जांच की कमान CBI के आर० एस० चीमा को दिया गया तब चीमा जी ने जो बताया वो देख कर ये पूर्ण रूप से कहा जा सकता है की कांग्रेस नाम की सरकार उस समय एक आतंकवादी जैसा व्यव्हार कर रही थी और दिल्ली की पुलिस को अपने इशारे पर नचा रही थी| चीमा ने उस समय के एडिसनल जज जे० आर० आर्यन को बताया की "दिल्ली की पुलिस एक पूर्व-नियोजित तरीके से व्यव्हार कर रही थी दंगे के समय और दंगे पर अपनी ऑंखें बंद किये बैठी थी| उस नरसंहार के दौरान १५० दंगे की वारदातों के बारे में पुलिस को कम्प्लेन किया गया लेकिन पहली ५ वारदातें जो छोटी थीं और शुरुवात की थीं उन्हें ही एफ़० आ० आर० में लिखा गया और इसका किसी भी मीडिया में कोई उल्लेख नहीं है|"
 पर हद तो तब हो गई जब इतने के बाद भी जो दाग नेताओं के ऊपर लगे थे और उनके खिलाफ कोर्ट में सुनवाई हो रही थी उसमे कोर्ट ने ऐसा साक्ष्य माँगा की सुन कर यही कहा जा सकता है की भारत की अदालतें वही फैसला सुनती हैं जो सरकार में बैठे लोग चाहते हैं| कोर्ट ने CBI से माँगा की जिन नेताओं पर आरोप लगे हैं उनके खिलाफ आपके पास क्या सुबूत हैं गवाहों के अलावा, कोई न्यूज़ पेपर की कटिंग, कोई भी मीडिया की खबर कुछ और लाइए| जब न्यूज़ पेपर में ही खबर में नाम आने से आरोप सिद्ध होता है तो छोटे लोगों को तो न्याय मिलने से रहा क्यूंकि उनके पास तो सिर्फ चंद गवाह होते हैं लेकिन पेपर की कटिंग नहीं होती है|
अब इस सामूहिक हत्याकांड के बारे में जितना लिखे उतना कम ही लगेगा क्युकी ये इतना जतन से जो करवाया गया था और आज भी इसमें बर्बाद लोग जब भारत की अदालत से त्रस्त हो और भारत छोड़ अमेरिका में शरण लिए उन लोगों ने अमेरिका में कांग्रेस के खिलाफ और इस नरसंहार के खिलाफ केस किया जिसकी सुनवाई आने वाली २७ जून २०१२ को हुआ| पर कांग्रेस का भांडपन तो देखिये कांग्रेस ने अमेरिका की सरकार से ये कहा की जो केस अमेरिका की अदालत में कांग्रेस के खिलाफ चल रहा है वो चुकी २५ साल पुराना है अतः इस केस को ख़ारिज कर दिया जाये|

 इस केस को ख़ारिज करने के लिए देखिये कैसे कांग्रेस के सांसद मोतीलाल वोरा ने भांडों वाली दलील दी की, "कोई भी समन या कम्प्लेन इंडियन नेशनल कांग्रेस को नहीं मिला है अतः इस केस को ख़ारिज करें|"
 इससे २ कदम आगे बढ़ कर इस वोरा ने ये कहा अपने एफिडेविड में कहा की इंडियन नेशनल कांग्रेस और इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस दोनों अलग-अलग एंटिटी हैं और दोनों का कोई सम्बन्ध नहीं है क्यूंकि ये छोटा बच्चा वोरा का नहीं था।
 पि० चिदंबरम २५ जून २०११ को १९८४ में हुए सिख नरसंहार के ऊपर बोलते हुए कहा की, "ये समय है की हम १९८४ की उस घटना को भूल एक नए भारत का निर्माण करें|" अब जरा कोई इस पर बोलेगा की ये क्या था क्यूंकि खुद तो ये लुंगी उठा-उठा कर गुजरात के २००२ के दंगे पर भौकते हुए दिख जाता है|
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तो ये है इस खुनी कांग्रेस का दोहरा चरित्र की, "खुद करे तो रासलीला और कहीं किसी घटना का जवाब मिले तो वो वह्सीपना|"
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वाह रे कांग्रेस तेरी महिमा अपरम्पार.....करती रह ऐसे ही नरसंहार||
 १९८४ का दिल्ली का सिख विरोधी दंगा: ३१ अक्तूबर १९८४ से ३ नवम्बर १९८४ के बिच में एक दंगा हुआ जिसमे करीब ५००० लोगो की आहुति ली हमारे इस कांग्रेस ने| इन मरे लोगो में बड़े बूढ़े, औरते, छोटे बच्चे तक शामिल थे| ये दंगा पूरी तरह एक तरफ़ा दंगा था जिसे उस समय की सरकार ने कुछ भी न करके बढ़ावा दिया| और इतने पर ही नहीं माने हमारे तत्कालीन कांग्रेस सत्ताधारी तो भावनाओ को बढ़ावा देने के लिए दिया एक बयान जो शायद एक गाँव का प्रधान भी नहीं देता पर हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री और "भारत रत्न" राजीव गाँधी ने एक बोट पार्टी में १९ नवम्बर को बयान दिया की ,

“Some riots took place in the country following the murder of Indira Ji. We know the people were very angry and for a few days it seemed that India had been shaken. But, when a mighty tree falls, it is only natural that the earth around it does shake a little.” "कुछ दंगे हुए हमारे देश में इंदिरा जी की हत्या के चलते| हम जानते हैं की कुछ लोग कितने गुस्से में हैं और इसके चलते पूरा भारत हिल गया| पर जब एक बड़ा पेंड गिरता है तो उसके आस पास की धरती हिल ही जाती है"|

क्या असहाय और निरपराध लोगो का मरना हमारे तत्कालीन भारत रत्न और प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के लिए एक छोटा सा हिलना मात्र था| पर आज तक क्या हुआ उस दंगे में? कितने लोगो को हमारे कोर्ट ने सजा सुने? क्या ऐसे भाषणों के चलते देश की जनता की भावना नहीं भड़की थी? क्या राजीव गाँधी पर कोर्ट ने आज तक ऐसे भड़काऊ भाषण और दंगा बढ़ाने के लिए राजीव गाँधी पर इल्जाम शाबित नहीं होता है?
१९६४ के राउरकेला और जमशेदपुर के दंगे में २००० मासूम लोगो ने अपनी जान गँवाई और उस समय कांग्रेस की सरकार थी वहां| १९६७ के रांची के दंगे में २०० लोगो को बलि दी गई फिर से कांग्रेस की सत्ता| १९६९ का अहमदाबाद का दंगा भी कांग्रेस के राज्य में २०० लोगो को खा गया| इसके अलावा भी कांग्रेस के ही राज्य में कई और बड़े दंगे हुए जैसे की १९८० का मोरादाबाद का दंगा जो २००० लोगो को खा गया,
१८ फ़रवरी १९८३ में हुए नेल्ली के सामूहिक हत्याकांड के बारे में आप सभी जानते ही होंगे पर फिर भी मै उस बारे में लिखने की कोशिस करता हु| १८ फ़रवरी १९८३ को नेल्ली में हुए पूर्वनियोजित हत्याकांड में जबकि आसाम में राष्ट्रपति शासन में था और सीधे हमारी "भारत रत्न" माननीय इंदिरा गाँधी उस समय आसाम को देख रही थी तभी एक पूर्वनियोजित हत्याकांड में करीब ६००० लोग मरे| उस समय हमारी "भारत रत्न" इंदिरा गाँधी ने वक्तव्य दिया की :

“One had to let such events take their own course before stepping in.” "हमें ऐसी घटनाओ को होने देना अपने तरीके से होने देना चाहिए इस घटना में उतरने से पहले"|
 विडंबना की बात है की कथित बुद्धिजीवियों के साथ भाजपा के दम पर सत्तासीन नीतीश कुमार जैसे नेता भी मोदी जी को साम्प्रदायिक कहने लगे हैं .नीतीश जैसे गिरगिट नेताओं का इतिहास भी यहाँ जानना जरुरी हो गया है .नरेन्द्र मोदी पर कम्युनल होने का सबसे बड़ा जो आरोप है उस आरोप का मापदंड है कि उनके कार्यकाल में २००२ में गुजरात में दंगे हुए। यदि किसी के कार्यकाल में दंगे होने से उक्त शासक/ प्रशासक सांप्रदायिक माना जाना चाहिए तब तो नीतिश कुमार के राजनीतिक गुरु कर्पूरी ठाकुर को भी घोर सांप्रदायिक करार देना पड़ेगा। यदि किसी प्रदेश में दंगे होने से उस प्रदेश की सरकार की राहत राशि को भी सांप्रदायिक प्रदेश में वर्गीकरण किया जाएगा तो गुजरात से पहले बिहार को अस्पृश्य कह कर सांप्रदायिक प्रदेश की पांत में बैठाना पड़ेगा। इस देश में आजादी के बाद पहला ही हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगा अविभाजित बिहार में हुआ था। तब कृष्ण बल्लभ सहाय बिहार के मुख्यमंत्री थे। आज दिन तक किसी बिहारी विद्वान ने कृष्ण बल्लभ सहाय को सांप्रदायिक नहीं कहा है। जो कहते हैं कि सांप्रदायिकता की सबसे बड़ी दवा विकास है उनको भी बिहार प्रांत के जमशेदपुर के १९६४ और १९७९ के दंगों का इतिहास पढ़ लेना चाहिए।

 देखो दंगों का इतिहास!
जमशेदपुर हिंदुस्तान का पहला पूर्ण सुनियोजित शहर है। जमशेदपुर का विकास कितना सुनियोजित है इसका अंदाज आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि वहां आज भी महापालिका के गठन की आवश्यकता नहीं पड़ी है। १९६४ में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हिंदुओं के भारी नरसंहार से शरणार्थियों का दबाव पड़ा। जमशेदपुर में हिंदू-मुस्लिम दंगे शुरू हुए जो राउरकेला, कोलकाता तक फैल गए। इसी जमशेदपुर में १९७९ में फिर दंगे हुए तब तो बिहार में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार थी। १९७७ में ही नीतिश कुमार पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़कर हारे थे। तब उन्हीं की पार्टी से जमशेदपुर (पूर्व) से दीनानाथ पांडे विधायक चुने गए थे। जमशेदपुर दंगों की जांच के लिए गठित जितेंद्र नारायण आयोग ने जनता पार्टी विधायक दीनानाथ पांडे को दंगे भड़काने का दोषी करार दिया था। यदि माया कोडनानी के दंगाई करार होने से नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक माने जाने चाहिए तो दीनानाथ पांडे की सांप्रदायिकता के लिए कर्पूरी ठाकुर को दोषी क्यों नहीं मानना चाहिए? कर्पूरी ठाकुर जनता पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के पहले जन क्रांति दल के नेता थे। १९६७ में रांची-हटिया का हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगा जन क्रांति दल के महामाया प्रसाद सिन्हा के कार्यकाल में हुआ था। महामाया प्रसाद सिन्हा को वर्तमान गांधी मैदान जिसका नाम तब बांकीपुर मैदान हुआ करता था, पर १५ अगस्त १९४७ को तिरंगा झंडा फहराने का गौरव प्रदान किया गया था।
‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान मुल्ला भागो पाकिस्तान!’
नीतिश कुमार को कर्पूरी ठाकुर का चेला माना जाता है और ठाकुर के राजनीतिक संरक्षक महामाया प्रसाद सिन्हा थे। निश्चित है कि नीतिश कुमार के अंतर्मन में महामाया प्रसाद सिन्हा के सेकुलरवाद में कोई संदेह नहीं होगा। १९८९ में बिहार में भागलपुर दंगा हुआ। नीतिश कुमार नहीं भूले होंगे कि इस दंगे में बिहार की मिलिट्री पुलिस खुद नारे लगा रही थी- ‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान, मुल्ला भागो पाकिस्तान!’ दंगाइयों ने औरंगजेब काल की हसना मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। पुलिस अफसर रामचंदर सिंह के नेतृत्व में चंदेरी के एक तालाब में ६४ लाशें गाड़ दी गई थीं। १६ लोगों की लाशों को गाड़कर उस पर पत्ता गोभी उगा दी गई थी। तब मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा थे जिनके नीतिश कुमार राजनीतिक करीबी करार दिए जाते रहे हैं। सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने कालांतर में अपनी जीवनी ‘मेरी यादें, मेरी भूलें’ में दंगों का दोष अपने पूर्ववर्ती कांग्रेसी मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर लगाया था। नीतिश कुमार ने न कभी भागवत झा आजाद और न ही सत्येंद्र नारायण सिन्हा को सांप्रदायिक माना।
 नेल्ली दंगा
कांग्रेस की भूमिका पर एक बार फिर चर्चा कर लेते हैं .१९८३ का असम का नेल्ली दंगा कौन भूल सकता है? सिर्फ ६ घंटे में ५००० लोगों को सांप्रदायिक दंगे में कत्ल कर दिया गया था। तब असम में केपीएस गिल जैसा अफसर उस इलाके का पुलिस महानिरीक्षक था। केपीएस गिल की सिफारिश पर ही ‘आसू’ के विरोध के बावजूद नेल्ली में चुनाव कराए गए थे। मतदान के लिए लोग निकलते तब तक उन गांवों को घेर कर कब्रिस्तान बना दिया गया। तब हितेश्वर सैकिया असम के मुख्यमंत्री थे। साल भर के भीतर दंगों की जांच के लिए गठित तिवारी आयोग ने अपनी सिफारिशें हितेश्वर सैकिया सरकार को सौंप दी। सैकिया ने कभी उस रिपोर्ट को प्रकाशित तक नहीं होने दिया। आज दिन तक किसी ने हितेश्वर सैकिया को ‘यमराज’ की संज्ञा नहीं दी। उलटे १९८५ में राजीव गांधी ने तिवारी रिपोर्ट में दोषी माने गए ‘आसू’ नामक संगठन से असम समझौता किया। इस समझौते के तहत नेल्ली दंगे में दर्ज सारे मामलों को तत्काल बंद करा दिया गया। सेकुलर मीडिया मार्तंडों! कृपया बताओ, हितेश्वर सैकिया और राजीव गांधी किस मापदंड पर सेकुलर हैं?

दंगे और देसाई
अब हम थोड़ी बात कर लें उस गुजरात के दंगों के इतिहास की जिसके संविधान सम्मत मुख्यमंत्री को मुसलमान और सेकुलर वैश्विक अस्पृश्य बनाने पर आमादा हैं। आजादी के बाद गुजरात के अमदाबाद शहर में पहली बार दंगा १९६९ में हुआ। २००२ का दंगा तो गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में लगाई गई आग की प्रतिक्रिया में हुआ। गोधरा से उठी ७२ कारसेवकों की खाक लाशों पर प्रतिक्रिया को स्वाभाविक माना जा सकता है। १९६९ में जेरूसलेम में अल-अक्सा मस्जिद में आग लगी थी। प्रतिक्रिया में भड़क गए थे अमदाबाद के मुसलमान। अमदाबाद में एक हिंदू मंदिर को मुसलमानों ने जला दिया। तब गुजरात में मोरारजी देसाई के चहेते हितेंद्र देसाई मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थे। कांग्रेस दो फाड़ हो चुकी थी। मोरारजी कांग्रेस (ओ) में थे, उनके चहेते हितेंद्र देसाई को अपदस्थ करने के लिए इंदिरावादी कांग्रेसियों ने दंगे को हवा दे दी। १९६९ के अमदाबाद दंगों की जांच के लिए गठित जस्टिस जगन मोहन रेड्डी आयोग की रिपोर्ट कहती है कि इन दंगों में पुलिस लाइन के बगल में मौजूद मुहल्लों को भी जलाकर खाक कर दिया गया था। ३७ मस्जिदें, ६० दरगाहें और ६ कब्रिस्तान पूंâक दिए गए थे। ३ मंदिर भी खाक हुए थे। हितेंद्र देसाई को किसी ने जिम्मेदार नहीं करार दिया। यह तो रहा हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगों का इतिहास।

सांप्रदायिकता का पुरस्कार
३१ अक्टूबर १९८४ को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगे कराने वाले एचकेएल भगत को केन्द्र में सूचना एवं प्रसारण का काबीना मंत्री इनाम के तौर पर बनाया गया। ललित माकन के पुत्र अजय माकन आज तक मंत्रिपद से पुरस्कृत हैं। जगदीश टाइटलर वेंâद्रीय मंत्री और सज्जन कुमार सांसद रहे। यह सब सांप्रदायिकता के पुरस्कार स्वरूप ही हासिल हुआ। वेद मारवाह आयोग, रंगनाथ मिश्रा आयोग, कपूर मित्तल समिति, जैन बनर्जी समिति, पोट्टी रोशा समिति, जैन अग्रवाल समिति, आहूजा समिति, नरूला समिति और नानावटी आयोग की जांच रिपोर्ट के बाद भी किसी पर कार्रवाई नहीं हुई। २००७ में सीबीआई की रिपोर्ट में फर्जी क्लीन चिट देकर जगदीश टाइटलर को उपकृत करने वाले अधिकारी अश्विनी कुमार को प्रियंका गांधी की सिफारिश पर सीबीआई का निदेशक बनाया जाता है। यही अश्विनी कुमार गांधी परिवार की सेवा के बदले में सीबीआई निदेशक पद से निवृत्ति के बाद पहले राज्यपाल नियुक्त होने का मौका पाते हैं। आज कल ये नागालैंड के राज्यपाल हैं। क्या सांप्रदायिकता के इस कोण पर बहस करना जरूरी नहीं?



मोंटेक सिंह अहलूवालिया

Look, what the hell is going on, in our country.
एक सांसद द्वारा संसद में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में पता चला है कि हमारे देश के योजना आयोग के उपाध्यक्ष 'मोंटेक सिंह अहलूवालिया' साल के 365 दिनों में 220 दिन विदेश यात्रा पर थे जहाँ उनके होटल का खर्चा 10 लाख से 15 लाख प्रति रात था।
ये वही जनाब हैं जो आम आदमी के लिए 28 रुपये प्रतिदिन में ज़िंदगी गुजारने की बात करते हैं।

अगर हम जित गए तो दुबारा शुरू होंगे गाय के कतल खाने



लो करलो बात,,,,कसाई अब कपडे उतार कर खुल्लम खुला आगये अपनी औकात पर

कर्णाटक कोंगरेश का चुनावी नारा,,,अगर हम जित गए तो दुबारा शुरू होंगे गाय के कतल खाने ,,,,,जी हा ,,किसी भेड बकरी के नहीं गाय के कतल खाने

क्या कर्नाटका में सारे प्रॉब्लम सोल्व हो गए है ????

2 4 घंटा बिजली ,,,,,गाँव गाँव तक पानी ,,,,1 0 0 % रोजगारी ,,यह सारि समस्याओ से मुक्त हो चुका है कर्नाटक ??? जो यह कसाई कतलखाने के नाम पर भीख मांग रहे है

किसी भी पार्टी ने आजतक इतना वहेशी और बेहूदा नारा नहीं लगाया चुनाव जितने के लिए ,,,ऐसा नारा कांग्रेश ने लगाया है आज ,,,,,और वोह भी हिन्दुस्तान में

क्या कर्णाटक की जनता गाय को माता नहीं मानती ??????

कान खोलकर सुनलो कर्नाटक वालो अब यह लड़ाई,,,,,,रोम V / S ॐ की है

किसे वोट देंगे आप ???????
विकाश के पथ पर चलने वाली भाजपा को या गौ माँता की हत्यारी कोंगरेश को ???

जवाब दो ????,,भाजपा लाओ गाय बचाओ
खबर की पुस्टी के लिये लिंक देख देखे----> http://karnatakamuslims.com/portal/congress-to-roll-back-cow-slaughter-bill-if-voted-to-power/
विक्रम बारोट,,,वन्दे मातरम

Thursday, May 2, 2013

नितीश कुमार ने सन २०१० की इफ्तार पार्टी पर सरकारी खजाने से साठ लाख रूपये खर्च किये थे


आरटीआई के जबाब मे मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार नितीश कुमार ने सन २०१० की इफ्तार पार्टी पर सरकारी खजाने से साठ लाख रूपये खर्च किये थे |

कुल 5000 लोग आये थे |

कुल चालीस बकरे मुख्यमंत्री के सरकारी आवास मे काटे गए थे |

मित्रों, ये है धर्मनिरपेक्षता की असली परिभाषा | एक मुख्यमंत्री सरकारी खजाने से मुसलमानों को इफ्तार पार्टी दे सकता है तब भी वो धर्मनिरपेक्ष कहलाता है |

सरकारी खजाने से इफ्तार पार्टी की शुरुआत इस देश मे सबसे पहले इंदिरा गाँधी ने की थी | अपने वोट बैंक के लिए और मुसलमानों को खुश करने के लिए उन्होंने सरकारी खजाने से पहली बार अपने निवास तीन मूर्ति भवन मे भव्य इफ्तार पार्टी दिया था | जिसमे हर इस्लामिक देशो के राजदूत और कई मुल्लो को बुलाया गया था |
इंदिरा गाँधी के इस इफ्तार पार्टी की चर्चा पूरे देश मे कई महीनों तक चली | मुस्लिम भी बोटी चबाकर खुश हो रहे थे .. और इंदिरा गाँधी का ये फार्मूला हीट हो गया |

फिर तो उसके बाद जो मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्यपाल इफ्तार पार्टी न दे वो साम्प्रदायिक कहलाने लगा |

रामविलास पासवान, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, सी के जफर शरीफ, अब्दुल गनी खान चौधरी, आजम खान, जैसे हजारों लोगो ने सरकारी पैसे से भव्य इफ्तार पार्टी का आयोजन किया |

और हमारे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी हर साल सरकारी पैसे से अपने सरकारी निवास मे भव्य इफ्तार पार्टी करते है |

मजे की बात ये है की आजतक किसी भी मुल्ले या मुफ्ती ने इस पर कोई फतवा जारी नही किया . क्योकि इफ्तार पार्टी इस्लाम के अनुसार गलत है |

कुरान के अनुसार गरीबो को खाना खिलाकर तब रोजा खोलना चाहिए .. लेकिन सरकारी इफ्तार पार्टी मे तो सिक्यूरिटी गार्ड गरीबो को बाहर से ही लात मारकर भगा देता है |
और इफ्तार मे खाने की बर्बादी नही होनी चाहिए लेकिन इन पार्टियो मे बेशुमार खाने की बर्बादी होती है | और इफ्तार पार्टी करने वाले को अपनी कमाई से करना चाहिए .. लेकिन आम जनता के टैक्स के पैसे से सरकारी इफ्तार हराम है |

लेकिन मुल्ले इन सरकारी इफ्तार पार्टियो मे जाते है और बकरे और मुर्गे की टांग चबाकर फिर दो तीन मंत्रियो के साथ फोटो खिचवाकर खुश हो जाते है |

लेकिन क्या इस भारत देश मे जहां ८०% हिंदू है सरकारी पैसे से होली या दिवाली की पार्टी हिन्दुओ के लिए हो सकती है ?

बिलकुल नही .. क्योकि ये साम्प्रदायिक पार्टी होगी | हिंदू तो घोर साम्प्रदायिक और दंगाई होते है ये मै नही सोनिया गाँधी का बनाया हुआ साम्प्रदायिक हिंसा निवारण बिल कहता है |

और अगर कोई हिदुओ के लिए होली या दिवाली की पार्टी दे भी तो सबसे पहले हम हिन्दुओ मे से ही कई गद्दार दलाल जयचंद की औलादे सुप्रीम कोर्ट मे रिट दाखिल कर देंगी .. की ये तो घोर साम्प्रदायिक है .. समाज को तोड़ने वाला है .. लोगो को भडकाने वाला है .आदि आदि |

और फिर शाम को कुछ कुत्ते और कुतियाए हर टीवी चैनेल पर छाती कूटते नजर आएँगी |

जागो हिन्दुओ जागो ... कब तक इन जयचंदों की औलादों के हाथो अपने भविष्य और मुस्तकबिल को बर्बाद करते रहोगे ? तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों की हालात पाकिस्तान के हिन्दुओ से भी बदतर होने वाली है |

सिखो और मुसलमान का फर्क

जरा गौर कीजिये ......... 1984 का सिख-दंगा और सरकार सुस्त, सरबजीत की पाकिस्तान में गिरफ्तारी सरकार सुस्त, सरबजीत की पाकिस्तान में हत्या और सरकार फिर भी सुस्त .......... इसका मतलब साफ़ है की इस देश में अल्पसंख्यक के रूप में रह रहे सिक्ख समुदाय के प्रति सरकार का रवैया बिलकुल उदासीन है। ये वो सिक्ख समुदाय है जिसने हिन्दुओं पर अत्याचार के विरोध में मुगलों पर अपनी तलवार निकाली थी, इनके गुरुओं ने शहादत दी थी। ये कौम कभी सरकार से अपने लिए आरक्षण नहीं मांगती, भीख नहीं मांगती। आज ये कौम अपने बूते पर इस देश में खड़ी है। ये अपने आपको वोट बैंक नहीं बनने देती।

लेकिन ....... इसके ठीक उलट, अगर आज़म खान को अमेरिका के एयरपोर्ट पर तलाशी और पूछताछ के लिए रोक लिया जाता है तो भारत सरकार में फुर्ती आ जाती है, प्रधानमंत्री अपना विरोध व्यक्त करते हैं अमेरिका के खिलाफ, आखिर क्यों ?

जय जय सिया राम...... जय जय माँ भारती .....