Tuesday, November 12, 2013

आखिर क्यों गांधी ने सरदार पटेल को नहीं बनने दिया था देश का प्रधानमंत्री?

आखिर क्यों गांधी ने सरदार पटेल को नहीं बनने दिया था देश का प्रधानमंत्री?

भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री और लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल, आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन वे नहीं बन सके। सरदार पटेल यहां असफल नहीं हुए थे बल्कि गांधी जी की इच्छा के लिए उन्होंने खुद ही अपना नाम वापस ले लिया था।

उस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष को ही यह पद दिया जाना था और छः साल के अंतराल के बाद अध्यक्ष का चुनाव होने जा रहा था। इतिहास में दर्ज है कि कांग्रेस की जिन 15 समितियों द्वारा अध्यक्ष का चुनाव किया जाना था, उनमें से 12 सरदार पटेल के पक्ष में थीं और नेहरू जी के पक्ष में एक भी नहीं। फिर ऐसा क्या हुआ कि सरदार पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ गया,

१९४६: भारत के पहले प्रधानमंत्री का चुनाव किया जाना था और यह भी तय था कांग्रेस अध्यक्ष को ही प्रधानमंत्री बनाना था। चूंकि दूसरे विश्व युद्ध के कारण छः साल तक यह चुनाव नहीं हए और मौलाना आजाद उस वक़्त कांग्रेस के अध्यक्ष थे।

अब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए तीन नाम सबसे बड़े दावेदार था। सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आज़ाद और पं. जवाहर लाल नेहरू।

कांग्रेस के नए अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल हुए। उस समय कांग्रेस की 15 समितियों के प्रमुखों द्वारा अध्यक्ष का चुनाव होना था। महात्मा गांधी ने पं. नेहरू की ओर अपना झुकाव दिखाया।
उस दौरान 15 में से 12 समितियां सरदार पटेल के पक्ष में थीं, जबकि नेहरू जी के पक्ष में कोई भी नहीं। 15 में से 3 समितियां जो सरदार पटेल के पक्ष में नहीं थीं, उन्हें भी नेहरू जी स्वीकार नहीं थे।

गांधी जी जिद पर अड़ गए कि नेहरू जी को अध्यक्ष बनाया जाए। इसके लिए उन्होंने जेबी कृपलानी से संपर्क किया और कहा कि वे नेहरू जी के पक्ष में माहौल बनाएं। अब यहां नेहरू जी के पक्ष में उन नेताओं के हस्ताक्षर जुटाए गए, जिनकी अध्यक्ष के चुनाव में कोई भूमिका नहीं थी।

हालांकि, अध्यक्ष का चुनाव 15 समितियों के प्रमुखों को करना था, लेकिन गांधी जी के कारण नेहरू के समर्थन में हुए उन हस्ताक्षरों के खिलाफ किसी ने आवाज नहीं उठाई। इसके बाद गांधी जी के कहने पर सरदार पटेल ने अपना नामांकन वापस ले लिया।

सरदार पटेल द्वारा अपना नामांकन वापस लेने के बाद गांधी जी ने यह बात पं. नेहरू को बताई, लेकिन उन्होंने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मौलाना आजाद ने जब यह देखा कि गांधी जी की इच्छा नेहरू जी को अध्यक्ष बनाने की है तो वे भी पीछे हट गए।

इतिहास के अनुसार इस पूरे मामले पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की नाराजगी साफ तौर से देखी जा सकती थी। वे इसलिए नाराज नहीं थे कि पं. नेहरू को रेस में सबसे आगे किया जा रहा था, बल्कि वे इसलिए नाराज थे कि सरदार पटेल को जबरदस्ती अपना नामांकन वापस लेना पड़ा।

सरदार पटेल के पास पूर्ण बहुमत था और वे देश के पहले प्रधानमंत्री होते, लेकिन उन्होंने अपना नामांकन वापस लिया तो सिर्फ इसलिए कि वे गांधी जी की इच्छाओं का सम्मान करते थे। वे यह भी नहीं चाहते थे कि देश की एकता टूट जाए और जिन्ना अपने मकसद में कामयाब हो जाएं।

सरदार पटेल के विचार:
"शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौडा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है।"

"आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आंखों को क्रोध से लाल होने दीजिए और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिए।"

http://www.bhaskar.com/article-hf/CEL-why-could-not-become-prime-minister-sardar-patel-4420593-PHO.html?seq=1

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