Tuesday, November 12, 2013

नेहरू की भयंकर भूलें

नेहरू की भयंकर भूलें

जब षड्यंत्रों से बातनहीं बनी तो पाकिस्तान ने बल प्रयोगद्वारा कश्मीर को हथियाने की कोशिशकी तथा २२ अक्तूबर, १९४७को सेना के साथ कबाइलियों नेमुजफ्फराबाद की ओर कूच किया। लेकिनकश्मीर के नए प्रधानमंत्री मेहरचन्द्रमहाजन के बार-बार सहायता के अनुरोधपर भी भारत सरकार उदासीन रही।भारत सरकार के गुप्तचर विभाग नेभी इस सन्दर्भ में कोई पूर्वजानकारी नहीं दी। कश्मीर केब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह नेबिना वर्दी के २५० जवानों के साथपाकिस्तान की सेना को रोकनेकी कोशिश की तथा वेसभी वीरगति को प्राप्त हुए। आखिर२४ अक्तूबर को माउन्टबेटन ने"सुरक्षा कमेटी" की बैठक की। परन्तुबैठक में महाराजा को किसी भी प्रकारकी सहायता देने का निर्णयनहीं किया गया।२६ अक्तूबर को पुन:कमेटी की बैठक हुई। अध्यक्ष माउन्टबेटनअब भी महाराजा के हस्ताक्षर सहितविलय प्राप्त न होने तककिसी सहायता के पक्ष में नहीं थे।आखिरकार २६ अक्तूबर को सरदार पटेलने अपने सचिव वी.पी. मेननको महाराजा के हस्ताक्षर युक्त विलयदस्तावेज लाने को कहा। सरदार पटेलस्वयं वापसी में वी.पी. मेनन से मिलनेहवाई अड्डे पहुंचे। विलय पत्र मिलने केबाद २७ अक्तूबर को हवाई जहाजद्वारा श्रीनगर में भारतीयसेना भेजी गई।'दूसरे, जब भारत की विजय-वाहिनी सेनाएं कबाइलियों को खदेड़ रही थीं।सात नवम्बर को बारहमूला कबाइलियों सेखाली करा लिया गया था परन्तु पं. नेहरूने शेख अब्दुल्ला की सलाह पर तुरन्त युद्धविराम कर दिया। परिणामस्वरूपकश्मीर का एक तिहाई भाग जिसमेंमुजफ्फराबाद, पुंछ, मीरपुर, गिलागितआदि क्षेत्र आते हैं, पाकिस्तान के पास रहगए, जो आज भी "आजाद कश्मीर" के नामसे पुकारे जाते हैं।तीसरे, माउन्टबेटन की सलाह पर पं. नेहरूएक जनवरी, १९४८ को कश्मीरका मामला संयुक्त राष्ट्र संघकी सुरक्षा परिषद् में ले गए। सम्भवत:इसके द्वारा वे विश्व के सामनेअपनी ईमानदारी छवि का प्रदर्शनकरना चाहते थे तथा विश्वव्यापी प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहते थे। परयह प्रश्न विश्व पंचायत में युद्धका मुद्दा बन गया।चौथी भयंकर भूल पं. नेहरू ने तबकी जबकि देश के अनेक नेताआें के विरोध केबाद भी, शेख अब्दुल्ला की सलाह परभारतीय संविधान में धारा ३७० जुड़गई। न्यायाधीश डी.डी. बसु ने इसधारा को असंवैधानिक तथा राजनीति सेप्रेरित बतलाया। डा. भीमराव अम्बेडकरने इसका विरोध किया तथा स्वयं इसधारा को जोड़ने से मना कर दिया। इसपर प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने रियासतराज्यमंत्री गोपाल स्वामी आयंगरद्वारा १७ अक्तूबर, १९४९ को यहप्रस्ताव रखवाया। इसमें कश्मीर के लिएअलग संविधान को स्वीकृति दी गई जिसमेंभारत का कोई भी कानूनयहां की विधानसभा द्वारा पारित होनेतक लागू नहीं होगा। दूसरे शब्दों मेंदो संविधान, दो प्रधान तथा दो निशानको मान्यता दी गई। कश्मीर जाने के लिएपरमिट की अनिवार्यता की गई। शेखअब्दुल्ला कश्मीर के प्रधानमंत्री बने।वस्तुत: इस धारा के जोड़ने से बढ़करदूसरी कोई भयंकरगलती हो नहीं सकती थी।पांचवीं भयंकर भूल शेखअब्दुल्ला को कश्मीर का "प्रधानमंत्री"बनाकर की। उसी काल में देश के महानराजनेता डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेदो विधान,, दो प्रधान, दो निशान केविरुद्ध देशव्यापी आन्दोलन किया। वेपरमिट व्यवस्था को तोड़कर श्रीनगर गएजहां जेल में उनकी हत्या कर दी गई। पं.नेहरू को अपनी गलती का अहसास हुआ, परबहुत देर से। शेख अब्दुल्ला को कारागार मेंडाल दिया गया लेकिन पं. नेहरू नेअपनी मृत्यु से पूर्व अप्रैल, १९६४ मेंउन्हें पुन: रिहा कर दिया।आओ मेरे देशवासियों मिल कर हमगाँधी और नेहरु के द्वारा की गए उनभूलों को सुधारें....आओ कांग्रेस को देश से लात मार करभगाएं...

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