Thursday, October 24, 2013

जो हमारे लिए विदेश है ..वह उनके लिए स्वदेश है


सवाल भारत के संसाधन लूटने का नहीं है ...सवाल सिर्फ और सिर्फ भारत पर शासन करते रहने का है

इसीलिए इतनी मात्र में धन का भण्डार भरा गया है

वर्ना .व्यक्रिगत इच्छाओं की पूर्ति के लिए 50 - 100 करोड़ ही काफी थे

हाजारो लाखों करोड़ इसीलिए लुटे जाते है ..और विदेशों में भी तभी जमा किये जाते है .....ताकि हारने पर भी सत्ता का चाबुक बाहर से चलाया जा सके ...और उसी लुटे हुए पैसे के बल पर दुबारा सत्ता हासिल ही जा सके .........यह तरीका विदेशी आक्रान्ताओं का ही हो सकता है ... स्वदेशी शासको का कदापि नहीं .......इसीलिए धन - बल को विदेशों में सहेज कर रखा जाता है .........जो हमारे लिए विदेश है ..वह उनके लिए स्वदेश है ........

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