यह कितनी लज्जाजनक बात है की मुसलमान यह पसंद नही करते थे कि "वन्देमातरम्" का राष्ट्रीय गीत गाया जाए इसलिए गाँधीजी ने, जहाँ वे कर सकते थे, उसे बंद करा दिया| "वन्देमातरम्" के सम्मान के रक्षा के लिए अनेक देशभक्तो ने अपार कष्ट सहे और अपने प्राणो का बलिदान दिया| किन्तु जब एक मुसलमान ने "वन्देमातरम्" पर आपत्ति की तब गाँधीजी ने सारे राष्ट्र की भावना को ठुकराकर काँग्रेस पर दबाव डाला कि इस गीत के बिना हि काम चलाया जाए| इसलिए आज हम रवीन्द्रनाथ का "जनगणमन" गीत गाते है और "वन्देमातरम्" बन्द करा दिया गया है| क्या इससे भी पतित कोई काम हो सकता है कि एसे विश्व प्रसिध्द कोरस को केवल इसलिए बन्द कर दिया जाए कि एक अञानी हठधर्मी समुदाय उसे पसंद नहि करता| अगले वर्ष ही कांग्रेस ने जिन्ना के सम्मुख आत्म समर्पण कर दिया| पाकिस्तान मान लिया गया| जो कुछ उसके पश्चात हुआ, वह सबको भली-भाँति ञात है|
गाँधी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था। इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी-वध के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दी।
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