दिग्विजयसिंह मानव संसाधन मंत्रि बने तो... एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में तब कुछ नए पाठ जोडऩे की तैयारी तय है। एक पाठ हिंदू आतंकवाद पर जरूर होना चाहिए। वो कुछ इस तरह का होगा-
अमन का पाठ
प्यारे बच्चो, हिंदू हमेशा से ही आतंकी और उत्पाती रहे हैं। हिंसा और युद्ध उनके प्रिय विषय हैं। वे कभी शांति से बैठ ही नहीं सकते। तभी तो रामायण और महाभारत दुनिया में सिर्फ यहीं संभव हुए। छोटे-छोटे राजा भी जीवन भर आपस में लड़ते-झगड़ते रहे। पहली बार सातवीं सदी में मोहम्मद बिन कासिम सिंध में अमन का पैगाम लेकर आए। राजा दाहिर को उन्होंने शांति के सूत्र बताए। दाहिर की दो बेटियों को खलीफा की यूनीवर्सिटी में मानवता की उच्च शिक्षा के लिए भेजा।
फिर महमूद गजनवी ने भारत की 17 यात्राएं की और नरेंद्र मोदी के मौजूदा गुजरात समेत देश के कोने-कोने में अमन का संदेश फैलाया। फिर भी अडिय़ल हिंदू कुछ नहीं सीखे तो मुहम्मद गोरी ने यहां स्थाई बंदोबस्त किया। इसके बाद गुलाम, खिलजी, तुगलक, लोदी और मुगलों ने अपनी कई पीढिय़ां यहां अमन की स्थापना में लगा दीं। दुनिया में ऐसे उदाहरण कहीं नहीं मिलेंगे जब एक कौम को सुधारने के लिए कई राजवंशों ने अपनी कई पीढिय़ों का योगदान दिया हो। इतना ही नहीं, तैमूरलंग, नादिरशाह और अब्दाली भी शांति और आपसी सहयोग से मिलजुलकर जीने के संदेश लेकर अपने मुल्कों से हजारों मील दूर कष्ट उठाकर यहां के लोगों की भलाई के लिए सदियों तक आते रहे।
हिंदू मंदिर हमेशा से आतंक की जड़ रहे हैं, जहां पुरोहित रामायण और महाभारत के युद्धों की कहानियां सुनाकर जनता को भड़काते थे। इसीलिए अमन के इन फरिश्तों ने जिंदगी भर मंदिर तोड़े और कहीं-कहीं अमन की इमारतें तामीर कराईं। मुगल बादशाह शाहजहां ने मोहब्बत की मिसाल के रूप में ताजमहल का निर्माण कराया तब गुरू गोविंदसिंह ने खालसा नामक सशस्त्र लड़ाकों का एक संगठन ही खड़ा कर दिया। ये लोग पूरे मुल्क में उत्पात मचाते थे। शिवाजी भी छापामार लड़ाइयों में लोगों को उलझाते रहे। इसके लिए अमन के सिपाही औरंगजेब ने अपनी जी-जान लगा दी और बाल ठाकरे के महाराष्ट्र में ही आखिरी सांस ली। हमारे
महान् देश के प्यारे बापू और दो-दो परम प्रिय प्रधानमंत्रियों की जान किसने ली? महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को हमसे किसने छीना?
इन सात सौ सालों में लाखों बुद्धिमान और समझदार हिंदुओं को अमन की बात समझ में आती गई और वे अपनी मान्यताएं बदलकर शांति की परंपरा स्वीकार करते गए। अपनी बल्दियतें बदलकर उन्होंने कुफ्र से निजात पाई और जन्नत के हकदार हुए। मोहम्मद अली जिन्ना तो अमनपसंदों के लिए एक अलग मुल्क के ही हिमायती थे। इस तरह पाकिस्तान बना, जिसने दुनिया को बीसवीं सदी में अमन का मॉडल पेश किया।
बच्चो आपको यह भी जानना चाहिए कि दाऊद इब्राहिम कासकर अपने अनुयायियों के साथ अमन से मुंबई में रहना चाहते थे, लेकिन अशांति प्रिय भगवा ब्रिगेड की वजह से उन्हें हिजरत करनी पड़ी। आखिरकार उन्हें पाकिस्तान में पनाह मिली। आज की दुनिया में आतंक की जड़ अमेरिका है, जिसे अमन का पाठ पढ़ाने का जिम्मा अपने ओसामाजी ने लिया था। इसीलिए उन्हें भी पाकिस्तान ने अपनाया। श्री हाफिज सईद साहब जैसे अमनपसंद इंसानों की बदौलत ही एक बेहतर दुनिया की उम्मीद कायम है। हां तो बच्चो, बताओ आतंकवादी कौन हैं?

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