Friday, June 7, 2013

कांग्रेस को करोड़ों का चूना लगा चुके हैं दिग्विजय

कांग्रेस को करोड़ों का चूना लगा चुके हैं दिग्विजय
कांग्रेस का सबसे वफादार सिपाही और सोनिया गाँधी का सबसे बड़ा खास बनने वाले दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस को भी नहीं बक्शा,,,प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष और इसके बाद मुख्यमंत्री रहने के दौरान दिग्गी ने कांग्रेस को लाखों का चूना लगाया ,,दिग्गी की यह पोल मध्य प्रदेश कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष आरएम भटनागर ने खुद खोली है। श्री भटनागर 1978 से 1993 तक पार्टी में बने रहे। वे राजीव गांधी के भी काफी निकट थे। इनके कार्यकाल में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री रहे। । श्री भटनागर ने दिग्विजय सिंह पर जो भी आरोप लगाये हैं, वह उन्होंने शपथ पूर्वक बताये हैं। जिनकी पुष्टि, अखबारों, विधानसभा के रिकार्ड और प्रमाणिक गुप्त दस्तावेजों से होती है। श्री भटनागर ने इसकी सूचना गोपनीय पत्र द्वारा दिनांक 9 अगस्त 1998 और दिनांक 29 सितम्बर 2001 को सोनिया गांधी को दे दी थी। यह खबर इंदौर से छपने
वाले एक साप्ताहिक पत्रिका ने अपने अंकों में छापी थी।
दिग्विजय सिंह ने पहला घोटाला कांग्रेस की सम्पति हड़पने का किया था। सन 2006 से पूर्व मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का मुख्य कार्यालय लोक निर्माण विभाग के एक शेड में था। बाद में प्रदेश कांग्रेस कमिटी को अपना भवन बनाने हेतु मध्यप्रदेश आवास और पर्यावरण विभाग ने आदेश संख्या- 3308/4239, दिनांक 30/11/74 और पुनस्र्थापित आदेश दिनांक 30 अगस्त 1980 तथा आदेश दिनांक 20 /11 81 द्वारा रोशनपुरा भोपाल के नजूल शीट क्रमांक-3 प्लाट-7 में 5140 वर्ग फुट जमीन बिना प्रीमियम के एक रुपया वार्षिक भूभाट लेकर स्थायी पट्टे पर आवंटित कर दिया था, और उस भूखंड का विधिवत कब्जा कांग्रस कमेटी को नजूल से लेकर 23/11/81 को सौप दिया। भवन निर्माण हेतु सदस्यों और किरायेदारों से जो रुपए जमा हुए उस से तीन मंजिली ईमारत बनायी गयी, जिसमें दो बड़े हॉल और साथ में 59 दुकानें भी थीं। इस भवन का नाम जवाहर भवन शॉपिंग कॉम्प्लेक्स रखा गया। इस भवन की भूमि पूजा तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने 16 अगस्त 1984 को की थी और उद्घाटन राजीव गांधी ने किया था। निर्माण हेतु सदस्यों के चंदे से 29.84 लाख रुपए और किराये से 66.78 लाख रुपए जमा हुए थे और किराए की राशि से पार्टी का खर्च चलने
की बात कही गयी थी।
बाद में दिग्विजय सिंह ने 19/12/85 को एक फर्जी ट्रस्ट बनाकर उस भवन पर कब्जा कर लिया। यद्यपि उस ट्रस्ट का नाम कांग्रेस कमेटी ट्रस्ट था लेकिन उसका कांग्रेस से कोई सम्बन्ध नहीं था। दिग्विजय ने अनुभागीय अधिकारी (तहसीलदार) के समक्ष शपथपत्र देकर कहा की यह ट्रस्ट पुण्यार्थ है, और जवाहर भवन की सारी चल अचल सम्पति इसी ट्रस्ट की है। इस तरह कांग्रेस पार्टी दिग्विजय की किरायेदार बन (देशबंधु दिनांक 6 दिसंबर 1998) गई। दिग्विजय सिंह ने खुद को उस ट्रस्ट का अध्यक्ष बना लिया। उक्त ट्रस्ट में निम्न पदाधिकारी थे: 1. अध्यक्ष -दिग्विजय सिंह पुत्र बलभद्र सिंह 2. मोतीलाल वोरा ट्रस्टी 3. जगत पाल सिंह मैनेजिंग ट्रस्टी।
इस ट्रस्ट के विरुद्ध न्यायालय अनुभागीय अधिकारी तहसील हुजुर भोपाल में एक जनहित याचिका भी दर्ज की गयी थी, जो प्रकरण संख्या 04 बी-113 /85-86 दिनांक 12 जुलाई 88 में दर्ज हुआ था। बाद में यह मामला श्री आर.एम. भटनागर ने विधान सभा में भी उठवाया। मध्यप्रदेश विधान सभा के प्रश्न संख्या 9 (क्रमांक 579) दिनांक 23 फरवरी 96 को उक्त ट्रस्ट के बारे में करण सिंह ने यह सवाल किया था, ‘क्या रा'यमंत्री धार्मिक न्यास यह बताने का कष्ट करेंगे की इस ट्रस्ट के पंजीयन के समय तक कितनी बार ट्रस्टियों के नाम बदले गए हैं? जैसा की भटनागर ने 24 दिसंबर 98 को प्रश्न किया था। और पंजीयक से शिकायत की थी?’
इस पर विधान सभा में धार्मिक न्यास राज्यमंत्री धनेन्द्र साहू ने उत्तर दिया था कि अब तक उक्त ट्रस्ट के ट्रस्टी चार बार बदले गए हैं और ट्रस्ट के भवन की दुकानें पट्टे पर नहीं बल्कि किराये पर दी गयी हैं और इसकी अनुमति भी नहीं ली गयी थी। यही नहीं उक्त ट्रस्ट कि ऑडिट रिपोर्ट भी 31 मार्च 2000 तक नहीं दी गयी। इसके बाद दिग्विजय सिंह ने दुकानों से प्राप्त किराया पार्टी को न देकर अपने निजी काम में लगाना शुरूकर दिया। जिसकी खबर इंदौर से प्रकाशित ‘फ्री प्रेस जरनल’ ने दिनांक 5 नवम्बर 1986 को इस हेडिंग ‘दिग्विजय ऐक्यूज्ड ऑफ मिसयूजिंग पार्टी फंड्स’ से प्रकाशित की थी। श्री भटनागर ने बताया कि जवाहर भवन की 59 दुकानों से मिलाने वाले किराये से प्रति माह दो तीन लाख रुपये की जगह सिर्फ 65000/- ही जमा होते थे। इस प्रकार अकेले 10 साल में करोड़ों का घपला किया गया है। उक्त ट्रस्ट का खाता पंजाब नैशनल बैंक के भोपाल टी.टी. नगर ब्रांच में था, जिसका खाता नम्बर 19371 है। खाते से पता चला कि 1 अप्रैल 2001 से 26 मार्च 2003 तक ट्रस्ट से 1 करोड़, 21 लाख,1,649 रुपऐ निकले गए थे। जिसमें सेल्फ के नाम से 162739/- दिग्विजय ने निकला था। बैंक का लॉकर भी था। जिसमें कई मूल्यवान वस्तुएं भी थीं जो भेंट में मिली थीं। इसके अलावा नकद राशि भी थी। भटनागर ने बताया कि उस समय खाते में ग्यारह करोड़ रुपए थेे। लॉकर की दो चाभियां थीं। एक जगतपाल सिह के पास, और दूसरी दिग्विजय सिंह के पास थी। जब जगतपाल की मौत के बाद लॉकर खोला गया तो उसमें से कीमती चीजें गायब पाई गई थीं और खाते से 9 करोड़ रुपए का कोई हिसाब नहीं मिला (इंदौर से प्रकाशित स्पुतनिक दिनांक 31 जनवरी 2005)

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